माँ! पीड़ा का संसार
शीर्षक – माँ! पीड़ा का संसार
विधा – गीत
संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज. 332027
मो. 9001321438
मनचाही करता भव का जन,
कचोट रहा है इस तन को।
व्यवहार का व्यापार चला,
कोई पूछ रहा न इस जन को
माँ! पीड़ा का संसार।
मीठी सी कटार बात की,
चिपटी है हर जन मुख में।
ताने देकर सुख लेने वाले,
खुशी ढूँढ़ते पर दुख में।
माँ! पीड़ा का संसार।
पीड़ा का साम्राज्य मेरी हँसी पर,
आँसू में बहता जीवन-सागर।
लौट न आती थाती मेरी,
क्यों! फूट न पाती दुख की गागर।
माँ! पीड़ा का संसार।
उभर आती मूक हूक हृदय में,
सुधबुध खोकर भी क्या पाया!
एकाकी चुपचाप खोजता मैं
निर्बल से मिलने कौन आया!
माँ! पीड़ा का संसार।