माँ तेरी गोद में
वो जन्नत सा सुख कहाँ इस जग में ,
है जो माँ तेरी गोद में ….
…
जब से मैने आँखें खोली ,
पाया खुद को तेरी झोली में ,
इस मखमली कोमल बिछावन में ,
वो चैन की नींद कहाँ जो झूला झूलाती तेरी बांहों में ,
वो जन्नत सा सुख कहाँ इस जग में ,
है जो माँ तेरी गोद में ….
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ना छूट कर गिरने का भय ,
ना फिकर संभल कर उठने का ,
जब हाथ खुद का पाया तेरी हथेली में ,
इस गीत – संगीत तरंगित में ,
बताओ वो सूकून कहाँ जो ,
माँ गुनगुनाती तेरी लोरी में ,
वो जन्नत सा सुख कहाँ इस जग में ,
है जो माँ तेरी गोद में ….
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ना नीम की छांव में , ना चाँद की चाँदनी में ,
ना साथी – साथ में , ना ए सी , पंखे और कूलर में ,
बताओ ना वो शितलता कहाँ जो ,
माँ तेरे आँचल की ओट में ,
वो जन्नत सा सुख कहाँ इस जग में ,
है जो माँ तेरी गोद में ….
……
ना खीर में , ना पकवान में ,
ना ही किसी मिष्ठान्न में , और ना ही भोग छप्पन में ,
ना भांति – भांति के असंख्य भोजन में ,
वो मन भावन स्वाद कहाँ जो ,
माँ तेरे हाथों के निवालों में ,
वो जन्नत सा सुख कहाँ इस जग में ,
है जो माँ तेरी ग…
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