माँ गै करै छी गोहार
अहि बेर जे किछ भेलै जननी,
होए नै बारंबार,
माय धिया के मध्य हे जननी,
फेर नै बनबिहैं आरि,
माँ गै करै छी गोहार।
अपन व्यथा माँ किहियै ककरा,
छोडि तोरा संसार,
सुन इठलेतै जग भरि जननी,
देतै नै सहार,
माँ गै करै छी गोहार।
बुझलौं चित अछि चंचल जननी,
वाणी सेहो बेकार,
लक्ष अपराध क्षमा करु जननी,
धिया छी तोहार,
माँ गै करै छी गोहार।
सब दिन के नै आश अहि हमरो,
नै छै कोनो धाक,
दुए दिन के माॅं याचक बनिक,
ठार उमा अछि द्वार,
माँ गै करै छी गोहार।
माँ गै करै छी गोहार।
उमा झा