माँ गंगे
हे माँ गंगे , अपना सा पावन तन कर दो
ताप मन के हर स्वच्छ भाव से भर दो
कलुषित करते तुझक़ो जन बहुविध प्रकार
पर तू ह्दय कलेवर निर्मल धार से तर कर
हे माँ गंगे , अपना सा पावन तन कर दो
ताप मन के हर स्वच्छ भाव से भर दो
कलुषित करते तुझक़ो जन बहुविध प्रकार
पर तू ह्दय कलेवर निर्मल धार से तर कर