माँ को अपना बच्चा प्यारा
जैसे नभ को चाँद दुलारा
माँ को अपना बच्चा प्यारा
रोज कहानी नई सुनाती
लोरी देकर उसे सुलाती
बच्चों के हर दुख में रोती
उसके ही सुख में मुस्काती
बच्चे की खुशियों में रहता
छुपा हुआ उसका सुखसारा
जैसे नभ को चाँद दुलारा
माँ को अपना बच्चा प्यारा
बच्चे को भरपेट खिलाती
खुद चाहें भूखी सो जाती
रात रात भर जाग जाग कर
बीमारी में दवा खिलाती
उसके पास सदा रहता है
आशीषों से भरा पिटारा
जैसे नभ को चाँद दुलारा
माँ को अपना बच्चा प्यारा
बचपन मे तो ये माँ लगती
बच्चों को परियों की रानी
शुरू बुढ़ापा कर देता है
उस माँ में ही कमी गिनानी
लेकिन बच्चा माँ का रहता
जीवन भर आँखों का तारा
जैसे नभ को चाँद दुलारा
माँ को अपना बच्चा प्यारा
एक साथ कितने ही बच्चे
माँ तो पाल लिया करती है
लेकिन बच्चों को वो ही मां
बूढ़ी हो भारी लगती है
चार चार बच्चों का होता
इक माँ के सँग नहीं गुज़ारा
जैसे नभ को चाँद दुलारा
माँ को अपना बच्चा प्यारा
16-05-2018
डॉ अर्चना गुप्ता