माँ के नाम
मैं हरदिन प्यार मुहब्बत के,
नए अल्फाज़ गढता हू..
आज की शाम मुहब्बत और,
माँ के नाम पढ़ता हू..
माँ वो दरजा है जिसको खुद,
खुदा ने ही सवारा है..
तभी तो जन्नत को माँ की,
कदमो मे ऊतारा है..
माँ नाराज न हो बस,
मैं इतने से ही डरता हू..
आज की शाम मुहब्बत और,
माँ के नाम पढ़ता हू..
सुनो माँ की मुहब्बत की,
कोई भी हद नही होती..
करे औलाद खातिर जो,
दुआ वो रद नही होती..
दुआये लेकर हरदिन मैं,
मंजिल ओर बढता हू..
आज की शाम मुहब्बत और,
माँ के नाम पढ़ता हू..
लगे जो बद्दूआ माँ की,
ख़ुशी तक मिल नही सकती..
करोगे लाख साजदे फिर भी,
जन्नत मिल नही सकती..
यही वो राग है जिसको,
मैं हर महफ़िल मे पढ़ता हू..
आज की शाम मुहब्बत और,
माँ के नाम पढ़ता हू..
(ज़ैद_बलियावी)