माँ की महिमा
1.
माँ की गोदी से बड़ी , हुई न अब तक गोद ।
मातृ गोद में बैठकर, मिलता अमित प्रमोद ।
जिनको मातृ अभाव हो , दूर नेह का कोष —
अक्सर ये देखा गया , भटके जीवन कोद ।
2.
माँ का अपना कुछ नहीं ,बस बच्चों का प्यार ।
कम ज्यादा जो भी मिले , देती उन्हें पुकार ।
भूखी सूखी सो रहे , बच्चों हित बेचैन —
खटती अंतिम सांस तक , हो सन्तति उपकार ।
3.
माँ के चरणों से बड़ा , तीर्थ न हमको ज्ञात ।
सन्तति निज या और की , सबके लिए प्रभात।
इस तीर्थ के पूजन से , सब कुछ प्राणी पाय —
माँ का गर आशीष हो , सभी कष्ट हों मात ।
4.
माँ अजान सी पाक है , माँ गीता की आन ।
माँ पहली है शिक्षिका , देती दुर्लभ ज्ञान ।
माँ तुलसी के पात सी , हरे रोग का जोर —
प्रेम नेह का कोष माँ , धरती की भगवान ।
5.
अपने मुँह का कौर तक , बच्चे को दे मात।
बच्चा उसके हृदय में , ईश्वर की सौगात ।
भूखी रह खिलाय उसे , नेह लुटाती खूब —
दूध पिए जल्दी बढ़े , हो सुंदर सा गात ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551