“माँ की महिमा “(गेय मुक्तक “
“माँ की महिमा ”
(गेय मुक्तक ”
मुसीबत गर कोई मुझ पर, आये तो मैं कहता माँ।
भरम् कोई अगर मुझ पर, छाये तो मैं कहता माँ।
तु हैं मेरी माता, मैं हूँ तेरा बेटा
सितम कोई अगर मुझ पर, ढाये तो मैं कहता माँ।
कोई जगदम्बे कहता हैं, कोई काली समझता हैं।
मगर फूलों की बेचैनी तो बस माली समझता हैं।
तु मुझसे दूर कैसी माँ, मैं तुझसे दूर कैसा माँ।
तेरा आली समझता है या मेरा आली समझता है।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “