माँ की बरसी
**आ गई फिर माँ की बरसी**
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आ गई माँ तेरी फिर बरसी,
इस बार भी तू वापिस न परती।
आसमां में बन गई सितारा,
ढूंढ – ढूंढ तुम्हे मैं गया हारा,
मेघ तो छाये पर तू न बरसी।
इस बार भी तू वापिस न परती।
अब तक न ये परिवार जुड़ा है,
तेरे बिन घर का हाल बुरा है,
प्यासी आंखें प्यार को तरसी।
इस बार भी तू वापिस न परती।
तेरी याद में दिन – रात जगी है,
जिंदा सीने में आग लगी है,
बारिश बिन तो सूखी है धरती।
इस बार भी तू वापिस न परती।
रात चाँदनी है मनसीरत आई,
बिखरी मन में श्याम – स्याही,
जीवन-ज्योत है बुझती जलती।
इस बार भी तू वापिस न परती।
आ गई माँ तेरी फिर बरसी।
इस बार भी तू वापिस न परती।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)