Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Sep 2018 · 1 min read

माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता –आर के रस्तोगी

माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता
उसका ऋण कोई चुका नहीं सकता
कितने भी लाख करो दान व तीर्थ
माँ के बिना उद्धार नहीं हो सकता

माँ के बैगेर कोई तुम्हे जन्म नहीं दे सकता
माँ के बैगेर कोई कोख में रख नहीं सकता
लेती है माँ,कितनी प्रसव पीड़ा जन्म पर
उस पीड़ा को कोई दूसरा सह नहीं सकता

माँ की ममता का कोई मोल नहीं
फिर भी वह त्रिस्कार सहती है
वह गीले में खुद सोकर भी
तुमको सूखे में वह सुलाती है

माँ शब्द में जितना मिठास है
दुसरे शब्दों में हो नहीं सकता
मोम,मम्मी बोलते है बच्चे सब
पर इतना मिठास आ नहीं सकता

माँ शब्द का उच्चारण करके देखो
इसमें सब का मुह खुल जाता है
इसके पर्यावाची शब्द जितने बोलो
उसमे तुम्हारा मुह बंद हो जाता है

होता नहीं बटवारा का जिस घर में
वह घर तुम्हारा स्वर्ग बन जाता है
माँ बाँप का बटवारा होते ही घर
वह जल्दी ही नरक बन जाता है

माँ की महिमा अपरम अपार है
इसको शब्दों में बाँधा नही जा सकता
माँ एक छोटा सा शब्द है होते हुए भी
इसका वर्णन नहीं किया जा सकता है

माँ ही पहली शिक्षक है तुम्हारी
वह ही तुम्हे भाषा सिखाती है
सीख जाते है जब उसकी भाषा
वही मात्र भाषा कहलाती है

आर के रस्तोगी

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 217 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ram Krishan Rastogi
View all
You may also like:
अतिथि देवो न भव
अतिथि देवो न भव
Satish Srijan
हिंसा
हिंसा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
रेस का घोड़ा
रेस का घोड़ा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"ये तन किराये का घर"
Dr. Kishan tandon kranti
#आज_का_शोध😊
#आज_का_शोध😊
*प्रणय प्रभात*
(5) नैसर्गिक अभीप्सा --( बाँध लो फिर कुन्तलों में आज मेरी सूक्ष्म सत्ता )
(5) नैसर्गिक अभीप्सा --( बाँध लो फिर कुन्तलों में आज मेरी सूक्ष्म सत्ता )
Kishore Nigam
वर्षों पहले लिखी चार पंक्तियां
वर्षों पहले लिखी चार पंक्तियां
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
एक पल में ये अशोक बन जाता है
एक पल में ये अशोक बन जाता है
ruby kumari
"स्वप्न".........
Kailash singh
तस्वीर!
तस्वीर!
कविता झा ‘गीत’
एक सशक्त लघुकथाकार : लोककवि रामचरन गुप्त
एक सशक्त लघुकथाकार : लोककवि रामचरन गुप्त
कवि रमेशराज
बेटा
बेटा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
The_dk_poetry
भारत देश
भारत देश
लक्ष्मी सिंह
आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार...
आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार...
डॉ.सीमा अग्रवाल
इंसान समाज में रहता है चाहे कितना ही दुनिया कह ले की तुलना न
इंसान समाज में रहता है चाहे कितना ही दुनिया कह ले की तुलना न
पूर्वार्थ
शिव सबके आराध्य हैं, रावण हो या राम।
शिव सबके आराध्य हैं, रावण हो या राम।
Sanjay ' शून्य'
आजा रे अपने देश को
आजा रे अपने देश को
gurudeenverma198
मैं नन्हा नन्हा बालक हूँ
मैं नन्हा नन्हा बालक हूँ
अशोक कुमार ढोरिया
इस जग में है प्रीत की,
इस जग में है प्रीत की,
sushil sarna
निभाना साथ प्रियतम रे (विधाता छन्द)
निभाना साथ प्रियतम रे (विधाता छन्द)
नाथ सोनांचली
*लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)*
*लिखी डायरी है जो मैंने, कभी नहीं छपवाना (गीत)*
Ravi Prakash
चाय-दोस्ती - कविता
चाय-दोस्ती - कविता
Kanchan Khanna
आगे बढ़ने दे नहीं,
आगे बढ़ने दे नहीं,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
इत्तिफ़ाक़न मिला नहीं होता।
सत्य कुमार प्रेमी
संकल्प
संकल्प
Davina Amar Thakral
उठो पथिक थक कर हार ना मानो
उठो पथिक थक कर हार ना मानो
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
बोलना , सुनना और समझना । इन तीनों के प्रभाव से व्यक्तित्व मे
Raju Gajbhiye
औरों की खुशी के लिए ।
औरों की खुशी के लिए ।
Buddha Prakash
जिंदगी में इतना खुश रहो कि,
जिंदगी में इतना खुश रहो कि,
Ranjeet kumar patre
Loading...