माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता –आर के रस्तोगी
माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता
उसका ऋण कोई चुका नहीं सकता
कितने भी लाख करो दान व तीर्थ
माँ के बिना उद्धार नहीं हो सकता
माँ के बैगेर कोई तुम्हे जन्म नहीं दे सकता
माँ के बैगेर कोई कोख में रख नहीं सकता
लेती है माँ,कितनी प्रसव पीड़ा जन्म पर
उस पीड़ा को कोई दूसरा सह नहीं सकता
माँ की ममता का कोई मोल नहीं
फिर भी वह त्रिस्कार सहती है
वह गीले में खुद सोकर भी
तुमको सूखे में वह सुलाती है
माँ शब्द में जितना मिठास है
दुसरे शब्दों में हो नहीं सकता
मोम,मम्मी बोलते है बच्चे सब
पर इतना मिठास आ नहीं सकता
माँ शब्द का उच्चारण करके देखो
इसमें सब का मुह खुल जाता है
इसके पर्यावाची शब्द जितने बोलो
उसमे तुम्हारा मुह बंद हो जाता है
होता नहीं बटवारा का जिस घर में
वह घर तुम्हारा स्वर्ग बन जाता है
माँ बाँप का बटवारा होते ही घर
वह जल्दी ही नरक बन जाता है
माँ की महिमा अपरम अपार है
इसको शब्दों में बाँधा नही जा सकता
माँ एक छोटा सा शब्द है होते हुए भी
इसका वर्णन नहीं किया जा सकता है
माँ ही पहली शिक्षक है तुम्हारी
वह ही तुम्हे भाषा सिखाती है
सीख जाते है जब उसकी भाषा
वही मात्र भाषा कहलाती है
आर के रस्तोगी