माँ का निश्छल प्यार
तरु पल्लव सी ठंडी छाया उसके आंचल से मिलती है
बाल सुलभ मन की पीड़ा गोदी में लेकर हर लेती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार तू शीतल सी छाया देती है
शीतलता का एहसास उसके आंचल की छाया में
पतझड़ में भी सावन बनकर हर उपवन महकाती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार श्रद्धा सुमन बन महकाती है
निर्मम और निष्ठुर शब्द उसके शब्दकोश में नहीं
लाख दुखों को सहकर भी पालन पोषण करती है
माँ तेरा निश्छल प्यार हर मुश्किल में साथ मेरा देती है
हर ख्वाबों को सतरंगी रंगों से बुनकर बांहों में भर लेती
जीवन का नव श्रृंगार कर पीयूष रस वो छलकाती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार संस्कार नए सिखाती है
कितनी रातों को जागकर थपकी देकर मुझे सुलाती
आज भी मां तेरी हर यादें मन को मेरे बहलाती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार नित नए सपने संजोती है
पड़ ना किसी का साया रोज टीका काजल लगाती
हर दर्द समझ जाती डांट कर भी बेइंतहा प्यार जताती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार ममत्व का भाव सिखाती है
जब भी रोया माँ तड़प कर तूने मुझे गले लगाया है
आंचल थामें जब भी आगे बढ़ा एक नई राह दिखाती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार जिंदगी जीना हमें सिखाती है
सारी मोहब्बत को इकट्ठा कर भगवान ने मां को बनाया
जग के कोलाहल में ठंडी छांव सा शीतल सुख देती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार तू शीतल सी छाया देती है
भोर की पहली किरण सी खिलखिलाती हुई जब आती
हर रोज सूरज की किरण बनकर मुझे जगाती आती है
माँ तेरा यह निश्छल प्यार किरणों सी चमक देती है।