“माँ और बाबूजी”
माँ कहती है बेटा तू जहाँ कहीं भी रहे,
मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।
प्यार तू ना कर सही मुझको,
पर तुमको तो मेरा प्यार चाहिए।
तू यूँ ही बढ़ता रहे शिखर चढ़ता रहे,
मुझे तो तेरे सारे सपने साकार चाहिए।
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिये।
तू ना रख मुझको घर में अपने,
मुझको तो तेरे दिल का इक कोना बेकार चाहिए।
तेरे बापू कब से बिस्तर पर पड़े है,
उनको तेरे हाथों गंगाजल की एक धार चाहिए।
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।
तू जहाँ कहीं भी रहे बेटा खुश रहे,
मुझको तो तेरा बस इक तार चाहिए।
सबसे मैं कहती फिरती नेक है बेटा मेरा,
बस तेरा थोड़ा सा बेटा इकरार चाहिए।
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।
काज तू करें आठों पहर,
मेरे लिए तो तेरा बस इक रविवार चाहिए।
तू जीते जग सारा मैं हारूँ तुम से गवारा,
मुझको तो बस वही हार चाहिए।
टूटा है तन मेरा टूटी है आशा मेरी,
इस बूढ़े मन को तेरा थोड़ा सा सहार चाहिए।
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।
ना बेटा मेरा राम हो ना श्रवण कुमार चाहिए,
मुझको तो बेटा तेरा बस सच्चा व्यवहार चाहिए।
बेटा तू जहाँ कहीं भी रहे,
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।
बस मुझको तो तेरा इक दीदार चाहिए।।।
✍️हेमंत पराशर✍️