माँ एक लेख,सारी दुनिया ले देख
माँ पर लिखना इतना सहज और सरल नहीं है
जितना हम सोच लेते हैं
क्योंकि माँ शब्द को शब्दों के व्याकरण में तो बांधा जा सकता है
लेकिन माँ शब्द की भावना का मूल्यांकन
शब्दकोश के सीमित शब्दों से अभिव्यक्त ही नहीं किया जा सकता है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आप सदुपयोग निःसंदेह कर सकते हैं
पर किसी शब्द से दूसरे शब्द का कदापि नहीं
तो क्या माँ पर लिखना निरर्थक है
नहीं, जी बिल्कुल नहीं
यह कार्य केवल सूर्य को दीपक दिखाने के समान है
बहुत ही तुच्छ प्रयास
किंचित मात्र
यथार्थ तो ये है कि
आज तक कोई ऐसा व्यक्ति ही पैदा नहीं हुआ है
जो माँ की सर्वाधिक उपयुक्त परिभाषा प्रदान कर सके
माँ के स्वरूप का पूर्ण उल्लेख या वर्णन कर सके
विभिन्न कलमकारों का प्रयत्न मात्र
खण्डकाव्य है, महाकाव्य नहीं
और सभी इसी धर्म का अनुपालन करते हैं
मैं स्वयं भी
हो सकता है आपका मत भिन्न हो
पर भावना अभिन्न नहीं है
माँ की जय हो
माँ हो तो जय हो
माँ को नमन है, माँ को वंदन है
इस प्रकाशहीन आदित्य का
माँ को हृदय से अभिनंदन है।
पूर्णतः मौलिक स्वरचित लेख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.