!! माँ…….उधार माँगता हूँ !!
“माँ” मेरी नज़र में दुनिया का सबसे सुंदर शब्द है, जिसके आह्वान मात्र से ही सारे दुःखों का नाश हो जाता है। आज जब कभी गली-मोहल्लों में किसी ‘बचपन’ को माँ के गोद में खेलते देखता हूँ तो मेरे अंदर का बच्चा भी अपने बचपन को पुनर्जीवित करने की जिद्द करने लगता है। बैसे तो बचपन मैंने भी जिया है परंतु ठीक -ठीक कुछ याद नहीं…प्रस्तुत “गीत” में बचपन को आधार बनाकर “माँ” से कुछ मांगता हूँ……!
!! माँ…….उधार माँगता हूँ !!
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माँ तुझसे अपना बचपन उधार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
बचपन के वे दिन जब मैं इक छोटा नन्हा बच्चा था,
उठने चलने और बोलने में बिल्कुल कच्चा था,
फिर से अपने वे दिन मैं इक बार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
माँ तुझसे अपना बचपन उधार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
मेरी शरारत मेरी जिद्द पर तू अक्सर झल्लाती थी,
भैया के थाली से फिर भी खाना मुझे खिलाती थी,
बाबा-भैया-बहना का वो घरद्वार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
माँ तुझसे अपना बचपन उधार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
गली-मोहल्ले-चौबारों पर जब-जब कंचे खेला,
वापस जब भी घर लौटा तो थप्पड़ तेरे झेला,
फिर से तेरे वे थप्पड़ दो-चार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
माँ तुझसे अपना बचपन उधार माँगता हूँ,
तेरी प्यारी-प्यारी लोरी दुलार माँगता हूँ।
दीपक ‘दीप’ श्रीवास्तव
पालघर, महाराष्ट्र