माँ अन्नपूर्णा
“माँ अन्नपूर्णा”
शिवजी रोज सुबह 9 बजे गंगा स्नान करने के लिए जाते ,वहाँ अपनेआराध्य देव श्री राम जी की स्तुति नाम जाप करते थे।उधर पार्वती जी भोजन तैयार कर पकाती ,शिवजी के आने का इंतजार करती रहती थी।
शिवजी श्री राम नाम जप पूरा हो जाने के बाद आते ,माता पार्वती जी शिवजी को भोजन परोसती थी।
शिवजी प्रतिदिन श्री राम नाम जपकर आते माता पार्वती जी तत्काल भोजन परोसती थी।एक दिन अचानक शिवजी जल्दी आ गए तो, इस पर माता पार्वती जी ने पूछा ; प्रभु स्वामी जी आज आप इतनी जल्दी कैसे आ गए ….आज आपने अपने आराध्य देव प्रभु श्री राम जी के नामों का जप नहीं किया ….!
शिवजी कहने लगे जल्दी से भोजन परोस दीजिये ….मैने श्री राम नाम जप कर लिया है …!
इस पर माता पार्वती जी कहने लगी ..प्रभु जी मुझे भी श्री राम रक्षा स्त्रोत्र नाम जप सुनाइए …! !
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्र नाम तातुल्यं रामनाम वरानने।
प्रभु श्री राम नाम जप से भगवान व भक्त दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है दुनिया में जहाँ कहीं भी श्री राम का नाम लिया जाता है वहाँ पर आज भी हनुमान जी किसी न किसी रूप में प्रगट होकर आ जाते हैं।
शिवजी कहते हैं ;
मेरे मन को रमण करने वाली पार्वती :अथवा मन को रमण कराने वाले राम में मैं राम राम ऐसा उच्चारण करके रमण करता हूँ ;वह राम नाम और सहस्त्र नाम समान ही है।
श्री राम नाम के मुख में विराजमान होने से सुंदर हे पार्वती …
राम नाम इसी द्वयक्षर से , जागृत ,स्वप्न ,सुषुप्ति ,इन तीनों अवस्थाओं में जप करो। हे पार्वती मैं भी इन्हीं मनोरम राम में रमता हूँ। यह राम नाम विष्णु सहस्त्र नाम के तुल्य है।
अहो ! यह कितना रमणीय अर्थ है पर मेरे राघव ने मुझे इसके लिए कितना तड़फाया !कोई बात नहीं! देर हुई पर अंधेर नहीं ! लगता है कि मेरी आगामी छठे अनुष्ठान की पूर्व भूमिका में ही प्रभु श्री सीताराम जी ने मुझे इस अर्थ के योग्य समझा है।
मंत्र जप पूरा होते ही माता पार्वती ने देखते ही देखते छप्पन भोग तैयार कर दिया था।
शिवजी ये सब देख माता पार्वती जी का नाम माँ अन्नपूर्णा रख दिया था।
समस्या निवारण के लिए स्वयं शिवजी ने निरीक्षण किया फिर माता पार्वती जी ने अन्नपूर्णा का रूप धारण कर पृथ्वी पर प्रगट हुई उसके बाद शिवजी भिक्षुक का रूप रखकर माँ अन्नपूर्णा से चावल भिक्षा में मांगे और उन्हें भूखे लोगों के बीच बाँट दिया।उसके बाद पृथ्वी पर अन्नजल का संकट खत्म हो गया।
अन्नपूर्णा काशी ( वाराणसी) शहर की देवी है जहाँ उन्हें वाराणसी के राजा विश्वेश्वर (शिवजी) के साथ वाराणसी की रानी माना जाता है।
माँ अन्नपूर्णा को पूजा घर / मंदिर में ,रसोई में उत्तर पूर्व कोने में रखा जाता है। मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा की ओर और पूजा करने वाले का मुँह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
घी का दीपक जलाएं भोग लगाएं।
स्तुति :-
अन्नपूर्णा सदा पूर्ण शंकर प्राण वल्लभे,
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिक्षा देहिं च पार्वती
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवा भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्र्यम।।
माता पार्वती जी ने कहा ; –
विश्वनाथ मम नाथ पुरारी ,त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी।
चर अस अचर नाग नर देवा ,सकल करहिं पद पंकज सेवा।।
अर्थात ; – हे संसार के स्वामी ! मेरे नाथ हे त्रिपुरारी का वध करने वाले ! आपकी महिमा तीनों लोक में विख्यात है। चर ,अचर ,नाग,मनुष्य ,और देवता सभी आपके चरण कमलों की सेवा करते हैं।
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
जय श्री राम जय जय हनुमान जी 🚩
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शशिकला व्यास ✍