माँँ की महिमा
कविता, गीत, ग़ज़ल, रूबाई,
सबने माँँ की महिमा गाई।
जल सा है माँँ का मन निर्मल।
जलसा है माँँ से घर हर पल।
हर रँग में रँग जाती है माँँ,
जल से बन जाता ज्यों शतदल।
माँँ गंगाजल, माँँ तुलसीदल,
माँँ गुुलाबजल, माँँ है संदल।
जल-थल-नभ क्या गहरी खाई,
माँँ की कभी नहीं हद पाई।
कविता, गीत, ग़ज़ल, रूबाई,
सबने माँँ की महिमा गाई।
माँँ फूलों में बगिया जैसी।
रंगों में केसरिया जैसी।
माँँ भोजन में दलिया जैसी।
माँँ गीतों में रसिया जैसी।
माँँ वीरा,माँँ धी,माँँ बहना।
माँँ अनमोल जड़ी, माँँ गहना
रूप स्वरूप धरे जब-जब भी,
दूध-दही-मक्खन सी पाई।
कविता, गीत, ग़ज़ल, रूबाई,
सबने माँँ की महिमा गाई।