महेन्द्र सिंह कभी नहीं लिखता !
मैं लिखता हूँ …!
पर मैं कभी नहीं लिखता !
जो तोड़ते है,
वे जोड़ते नहीं !
ढाँप ली गई आँखें,
निष्पक्षता का धोतक है !
लोग धोखे में है !
पर्दे समर्पण सम्मान की झलक है,
लोग रीति से जोड़ लेते है !
घूँघट के पट खोल !
कहे तो,
पर्दा हटाये है,
देख महेन्द्र सिंह,
तेरी समझ कौन स्तर पर है !