Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Jul 2021 · 3 min read

महादैत्य

चारों तरफ अन्धकार छाया हुआ था। बच्चे, महिलाएं, बूढ़े, जवान सभी चीत्कार कर रहे थे। कोई किसी की नहीं सुनता। सब इधर-उधर भागते, बेतहाशा खाँसते और अन्त में तड़पकर शान्त हो जाते।
उस अँधेरी रात में अचानक वातावरण इतना विषाक्त हो चुका था कि साँस लेना भी कठिन प्रतीत होने लगा। इन सभी हालातों से बेख़बर प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. शशिकान्त अपने सहयोगी डॉ. समरेन्द्र के साथ शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर अपनी प्रयोगशाला में पिछले दो हफ्तों से प्रदूषण की समस्या का हल खोजने में व्यस्त थे।
विगत लगभग दो वर्षों में प्रदूषण का आतंक इतना बढ़ गया था, जितना शायद पिछली कई शताब्दियों में भी न बढ़ा होगा। लोग नई-नई बीमारियों के चंगुल में फँसते चले जा रहे थे। ऐसे में डॉ. शशिकान्त ने निश्चय कर लिया था कि वह इस समस्या का हल ढूँढ़ निकालेंगे। उन्होंने अपनी प्रयोगशाला इस प्रकार बनवाई थी कि न तो बाहर के वायुमण्डल का प्रभाव प्रयोगशाला के अन्दर पड़े, और न ही अन्दर के कृत्रिम वायुमण्डल का प्रभाव बाहर पड़े।
इधर शहर के लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे चले जा रहे थे। उन्हीं लोगों में विज्ञान की छात्रा रजनी भी थी। उसके पिता स्व. डॉ. अमर प्रख्यात वैज्ञानिक रह चुके थे। उनके संरक्षण में रह कर रजनी भी ब्रह्माण्ड के गूढ़ रहस्यों के बारे में अच्छी जानकारी रखने लगी थी।
आज वही रजनी अपनी माँ के साथ ऑक्सीजन मास्क लगाए अपनी कार में सवार होकर शहर से दूर भागी चली जा रही थी। सुबह होते-होते वह काफी दूर दूसरे शहर में पहुँच गयी। परन्तु यह क्या? यहाँ भी वही हाल देखकर रजनी अवाक रह गयी। चारों तरफ लोगों का हाहाकार सुनाई दे रहा था। प्यास से व्याकुल लोग जब पानी पीते तो अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते। जो जहाँ था, वहीं बेमौत मारा जा रहा था।
सूरज निकलते ही ताप अचानक बहुत अधिक बढ़ गया। ऐसा लगा, जैसे सृष्टि के अन्त का समय निकट आ गया हो। इस भीषण ताप को देखकर रजनी समझ गयी कि वायुमण्डल की ओज़ोन परत नष्ट हो रही है। परन्तु उसने धैर्य नहीं छोड़ा और डॉ. शशिकान्त की प्रयोगशाला की खोज में चल पड़ी। कुछ देर चलने के बाद उसे अहसास हुआ कि वह रास्ता भूल गयी है। फिर भी उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। देर तक भटकने के दौरान उसके पास ऑक्सीजन का भण्डार समाप्त होने लगा कि तभी उसे डॉ. शशिकान्त की प्रयोगशाला दिखाई दी।
उधर प्रयोगशाला के अन्दर डॉ. शशिकान्त और डॉ. समरेन्द्र अपने प्रयोगों में पूरी तन्मयता के साथ लगे हुए थे। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, दोनों वैज्ञानिकों के चेहरे नये उत्साह से आलोकित होते जा रहे थे। तभी घड़ी ने बारह का घण्टा बजाया और इसी के साथ दोनों वैज्ञानिक उछल पड़े और एक दूसरे से लिपट गये। आज उनको प्रयोगशाला में गये पन्द्रहवांँ दिन था, जब उनका प्रयोग सफल हुआ। उन्होंने एक नयी गैस का आविष्कार कर लिया था, जिसकी थोड़ी सी मात्रा वायुमण्डल में गैसीय सन्तुलन को बनाये रखने के लिए पर्याप्त थी। उन्होंने जल्दी से अपनी विशेष पोशाक पहनी ताकि इतने दिनों बाद बाहर जाने पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। वे जल्द से जल्द इस नये आविष्कार की सूचना प्रशासन के माध्यम से सरकार को देना चाहते थे।
प्रयोगशाला से बाहर आते ही वे चौंक गये। सामने एक कार खड़ी थी जिसका इंजन स्टार्ट था। कार के पास जाने पर पता चला कि उसके अन्दर एक युवती और एक प्रौढ़ महिला बेहोश पड़ी हुई हैं। डॉ. शशिकान्त प्रौढ़ महिला को तुरन्त पहचान गये कि वे स्व. डॉ. अमर की पत्नी हैं। उन्होंने अपने सहयोगी डॉ. समरेन्द्र से उन दोनों महिलाओं को प्रयोगशाला में ले जाकर उपचार करने को कहा।
कुछ ही पल बीते होंगे कि डॉ. शशिकान्त को महसूस हुआ कि उन्हें साँस लेने में कठिनाई हो रही है। वे तुरन्त समझ गये कि वायुमण्डल में प्रदूषण काफी बढ़ गया है। वे दौड़कर प्रयोगशाला के अन्दर गये और ऑक्सीजन मास्क लगाकर बाहर निकले। उन्होंने अपनी कार स्टार्ट की और और शहर की ओर तेज़ गति से बढ़ चले।
शहर पहुँचते ही डॉ. शशिकान्त की आँखें भर आयीं। उन्हें लगा, जैसे उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया हो। चारों ओर लाशें दिखाई दे रही थीं…. निर्जीव, शान्त लाशें। मौत का इतना वीभत्स रूप उन्हें रोने को मजबूर कर रहा था। प्रदूषण रूपी महादैत्य के इस विकराल आतंक को देखकर ये प्रश्न बारम्बार उनके मन-मस्तिष्क में कौंध रहे थे…… क्या यही है मनुष्य की उच्चाकांक्षा? क्या यही है मानव-जाति का विकास??
~समाप्त~

4 Likes · 2 Comments · 414 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तुम अपना भी  जरा ढंग देखो
तुम अपना भी जरा ढंग देखो
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*पाना दुर्लभ है सदा, सहस्त्रार का चक्र (कुंडलिया)*
*पाना दुर्लभ है सदा, सहस्त्रार का चक्र (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ईश्वर
ईश्वर
Neeraj Agarwal
छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जय माता दी
जय माता दी
Raju Gajbhiye
आओ गुफ्तगू करे
आओ गुफ्तगू करे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
गम के बगैर
गम के बगैर
Swami Ganganiya
"बारिश की बूंदें" (Raindrops)
Sidhartha Mishra
भिनसार हो गया
भिनसार हो गया
Satish Srijan
"स्वामी विवेकानंद"
Dr. Kishan tandon kranti
#तार्किक_तथ्य
#तार्किक_तथ्य
*Author प्रणय प्रभात*
किताबों में झुके सिर दुनिया में हमेशा ऊठे रहते हैं l
किताबों में झुके सिर दुनिया में हमेशा ऊठे रहते हैं l
Ranjeet kumar patre
चिंतन और अनुप्रिया
चिंतन और अनुप्रिया
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
कवि मोशाय।
कवि मोशाय।
Neelam Sharma
तूझे क़ैद कर रखूं मेरा ऐसा चाहत नहीं है
तूझे क़ैद कर रखूं मेरा ऐसा चाहत नहीं है
Keshav kishor Kumar
हर किसी का कर्ज़ चुकता हो गया
हर किसी का कर्ज़ चुकता हो गया
Shweta Soni
संदेह से बड़ा
संदेह से बड़ा
Dr fauzia Naseem shad
प्रेम
प्रेम
Sushmita Singh
💐प्रेम कौतुक-94💐
💐प्रेम कौतुक-94💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
सर सरिता सागर
सर सरिता सागर
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
कोरोना चालीसा
कोरोना चालीसा
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
चुनाव 2024
चुनाव 2024
Bodhisatva kastooriya
वर्षा का भेदभाव
वर्षा का भेदभाव
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
पापा आपकी बहुत याद आती है !
पापा आपकी बहुत याद आती है !
Kuldeep mishra (KD)
जो जी में आए कहें, बोलें बोल कुबोल।
जो जी में आए कहें, बोलें बोल कुबोल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
ऐ आसमां ना इतरा खुद पर
ऐ आसमां ना इतरा खुद पर
शिव प्रताप लोधी
ज़िक्र-ए-वफ़ा हो या बात हो बेवफ़ाई की ,
ज़िक्र-ए-वफ़ा हो या बात हो बेवफ़ाई की ,
sushil sarna
"बदलते भारत की तस्वीर"
पंकज कुमार कर्ण
2529.पूर्णिका
2529.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
अगर तोहफ़ा देने से मुहब्बत
अगर तोहफ़ा देने से मुहब्बत
shabina. Naaz
Loading...