महादेव
हे महाकाल, तू है विकराल
है चन्द्र सजा तेरे ही भाल
पावनी गंगा शीश विराजे
जटाजूट, बाघम्बर साजे
दे अमृत और पिए गरल
है कौन भला तुझ सा सरल
ध्यान समाधि की धूनी रमाई
स्वर्ग को मोक्ष की राह दिखाई
सरलता में बन बैठा भोला
हुआ क्रुद्ध, नेत्र फिर खोला
देख तुझे काल भी भागे
जला काम भी तेरे आगे
ले डमरू तांडव जब करते
क्या मनुज खुद देव भी डरते
शिव और शक्ति का मेल तुम्हीं हो
देवों में महादेव तुम्हीं हो
हो अरूप और अगम, अगोचर
तारण को बन जाते हो गोचर
तेरी महिमा कोई न जाने
है कौन भला जो तुझे पहचाने
चर-अचर हों भव से पार
तेरी कृपा जब बने आधार…
सुरेखा कादियान ‘सृजना’