महादेव को जानना होगा
ढूंढना किसे चाहते हो, क्या कोई ढुंढ उन्हें पाया है।
प्रकृति के कण कण में, मेरे महादेव की ही माया है।
प्रारंभ उन्ही से होता है, हर अंत की वही शुरुआत है।
क्यो ढूंढ रहे हो जग में, महादेव तेरे मन में समाया है।।
ढूंढने पर वह नहीं मिलेंगे, हमें महादेव को जानना होगा।
तर्क वितर्क के विचारों से, हमें मन को शांत करना होगा।
लहरों के शांत हो जाने पर, पानी मे प्रतिबिंब बन जाता है।
शब्द भावों से शांत मन में, शिव का प्रतिबिंब बन जाता है।
जब तक हमारे अंदर सांस है, तो शिव हमारे अंदर है।
हमारे अंदर सांस नहीं है, तब हम शिव के अंदर हैं।
हर प्रश्न का उत्तर शिव है, और हर प्रश्न भी शिव से है।
सत्य ही शिव है, शिव से शक्ति व शिव शक्ति ही सुंदर है।
अभी जो प्रत्यक्ष है, वही सत्य है, बस यही तो हमारा भ्रम होगा।
शिव को ढूंढना नहीं पहचाना है, अपने आप को जानना होगा।
जो है वह शिव है, जो नहीं है वह भी शिव है, शिव ही सत्य है।
ना तुम किसी के हो, ना कोई तुम्हारा है, और यही वो सत्य है।
शब्द है, ना अंक है, ना ही कोई आकर है, शिव तो निराकार है।
शिव त्याग समर्पण अभिमानि भक्तिमन को मिटाने का विकार है।
आकाश में वह पाताल में है, धरती के हर कण कण में शंकर है।
प्रकृति से पुरुष पृथक नही होता है, हर जीव के मन मे शंकर है।
लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588