मैं वो चीज़ हूं जो इश्क़ में मर जाऊंगी।
*यह तो बात सही है सबको, जग से जाना होता है (हिंदी गजल)*
कुछ फ़क़त आतिश-ए-रंज़िश में लगे रहते हैं
गांव और वसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*सिवा तेरे सुनो हम-दम हमारा भी नहीं*
सन्तानों ने दर्द के , लगा दिए पैबंद ।
मुझे किसी को रंग लगाने की जरूरत नहीं
बहुत कष्ट है ज़िन्दगी में
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चलो मनाएं नया साल... मगर किसलिए?
बता तूं उसे क्यों बदनाम किया जाए