महाकवि भवप्रीताक सुर सरदार नूनबेटनी बाबू
देवघरक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगक प्रधान पुरोहित (सरदार पण्डा) भवप्रीतानन्द ओझाक बांग्ला आ मैथिलीमे रचित झूमर, पाला, सोरठा आइयो मुक्तकंठ संग गाओल जाइत अछि। स्तोत्र, देशभक्ति गीत आ व्यंग्यक रचना सेहो प्रचुर मात्रामे केलनि। मिथिला क्षेत्रक सर्वोच्च प्रतिष्ठा भेटलनि। देवघरक हिन्दी विद्यापीठ आ मैथिली अकादमी द्वारा अनेक पोथी हिनक प्रकाशित भेल अछि।
जाननिहार बहुतो छथि, मुदा नूनबेटनी बाबूक कोनो चर्चा नाञि, जे हिनक पद केर गउलन आ सुर केर कसौटी पऽ गाबि कऽ सजउलन।
ई बात 1936 के छैय । देवघर के वैद्यनाथ मंदिर के सर्वश्रेष्ठ गायन टीम झूमर प्रतियोगिता में भाग लेबे खातिर जखन वर्धमान गेल रहै । जे ओतुका राजा श्री रायक विशेष आग्रह पर मठक प्रमुख भवप्रीतानन्द ओझा द्वारा पठाओल गेल रहै । ‘झुमर’ लोक गायनक एकटा शैली छिकै जे घाटवाल शासक बीच लोकप्रिय छल। एकर अतिरिक्त ओ घैरा, पाला जइसन विधाक सेहो शौकिन रहन ।
ओहि समय नूनबेटनी बाबू देवघरिया झूमर गायन मंडली के नेतृत्व करैत रहला । वैसे ई हुनकर डाक नाम(pan name) रहै । हुनकर असली नाम छलन्हि उपेन्द्र नाथ ओझा। हिनक पिताक नाम छल सुरेन्द्र नाथ ओझा। ओ देवघरक जरुआडीह निवासी रहला । तीन भाइमे जेठ छलाह। हुनकर रोजी-रोटीक साधन छल पंडा पेशासँ आमदनी। एहि सभ बातक अतिरिक्त हुनका मे जे छलनि से ई जे सुर पर हुनकर पकड़ गजब के छलनि । अद्भुत छल। भवप्रीता जीक लिखल गीतकेँ धुन संग कसौटी पऽ अनुकूलित करथि। कहबाक तात्पर्य जे हुनक रचित पद भारक तराजू पर परिष्कृत करैत रहला । कारण यैह रहै जे भावप्रीताक खातिर ओ सभसँ प्रिय छलाह। कृपापात्र रहलन ।
उपरोक्त प्रतियोगिता में देवघरिया गायन टीम उड़ीसा के टीम सँ हारल। उदास हृदय सँ ई टीम तुरन्त प्रतियोगिता स्थल सँ भागि वर्द्धमान स्टेशन पर आबि गेल। दू दिन ओतहि रहलाह। प्रारम्भिक समय शोक मनाबै मे बीतल। दोसर दिन साँझुमे सपुर्ण टीम स्टेशन सँ विदा लेला । तनिके भोजन केलनि । तखने राजाक एकटा सिपाही आबि कऽ कहलक जे राजा अहाँ सभ केँ बजौने अछि। नूनबेतनी बाबू बजलाह जे अहाँ घुरि जाउ आ राजा साहेब सँ फेर सँ प्रतियोगिता करवाक लेल कहियौन। तखन फेर आबि सकैत छी।
सिपाही घोड़ा पर चढ़ि घुरि गेला। ओतय पहुँचि ओ राजा साहेब केँ अपन संदेश सुनौलनि।किछु काल सोचलाक बाद राजा बजलाह जे मुनीमकेँ बजा कऽ प्रतियोगिताक घोषणा करा लिअ। गाँठ बान्हि लियौ, पंडा ठाकुर के खुशहाल भेजनाई हैँ।
दोसर सिपाहीसँ कहलक जे वर्द्धमान स्टेशनसँ सभकेँ बजा कऽ आनू। कहू जे हम फेर झूमर प्रतियोगिता करब ।ई समाचार पहुँचेबाक लेल आयल सिपाहीक संग देवघरिया गायन टीम फेर राजबारी आबि गेल। दू दिन धरि फेरस प्रतियोगिता चलैत रहल। देवघरिया टीम कतेको राउंड मे झंडा फहरौलक। अन्ततः झुमर, पाला, सोराठा, जत्रा आदि सभ विधामे सभ 36 दल पराजित हो गेल। एहि आयोजनक क्रम मे मिदनापुरक सत्यनारायणक नेतृत्व मे पाला गायन लेल एकटा टीम, प्रस्तुतिक क्रम मे गाबैत काल ‘हनुमान’क नाम बिसरि गेल। मुदा ओ दर्शक के ई नहि कहय चाहैत छलाह जे ई ‘गलती’ अछि. विस्मृति अछि। अधवयसू गायक स्वर मध्यम पर राखि क’ लग मे ठाढ़ किशोरी सँ पुछलक – “जे कोरे छे लोनका दोहों, तार नाम की?” (लंकाकेँ जरा देनिहारक नाम की अछि ?) युवक नहि बुझि पायल कीर्तनक परम्पराक अनुसार एकहि पाँतिकेँ दोहरौलक। आन-आन कीर्तनियाँ सेहो टोन बान्हि उच्च स्वरमे मुर्की लैत, अपन-अपन अंदाजमे “जे कोरे छे लंका दोहों…” दोहराबए लगलाह। एम्हर जे गलती केने छल ओकर कपार पर पसीना आबि गेल रहै । ओ दोसर सहकर्मीकेँ फुसफुसा कऽ बंगलामे पुछलक: “जे कोरे छे लोँका दोहों…” ओ सहकर्मी सेहो जोरसँ “जे कोरे छे…” चिचियाबए लगलाह जाबत ओ आगू नहि बजैत छलाह।
दोसर दिस वाहवाहीक गरज चरम पर छल। एतय नूनबेतनी बाबू के पता चलि गेल जे गायक पवनपुत्र हनुमान जी के नाम बिसरि गेल अछि आ ओकर कोनो सदस्य एहि बुझय मे सक्षम नहि अछि.
ठीक तखने सामने टाट पर बैसल नूनबेटनी बाबू आवाज खोललनि: “तुमी लेबी सोलो आना, आम जानी की?” (पूर्ण पारिश्रमिक अहाँ सब, हम सब की?) . गायक बुझि गेलाह जे हमार गलती पता चलि गेल । ओ “अरे… हे…” क’ क’ कबूल केलनि आ पाँति आगू बजलाह: “आमी दिबो 5 आना बताए दे तुमी.” (हम अपन पारिश्रमिकक एक चौथाई सँ बेसी देब। कहू।) आब गायन प्रतियोगिताक आनन्द चरम पर छल। जे बोरियतमे कूदि रहल छलाह से सेहो ठाढ़ भऽ गेलाह।
अपन पाँति सँ कानैत नूनबेतनी बाबू अपन सम्मान कायम रखबाक लेल वैह पाँति दोहरबैत बजलीह, “तुमी लबी सोलो आना, आमी जानी की?” ई बात समस्त देवघरिया दल सेहो दोहरौलक। एहि बेर प्रतिक्रिया मे तीन आना बढ़ि गेल। कहल गेल : “आमी दिबो 8 आना बताउ दे तुमी।” (आधा पारिश्रमिक देब। कहू।)
ओ मोंछ उमेठत बजलाह=-होनुमान… होनुमान…।” (हनुमान… हनुमान…)
एहि बेर भव्य प्रशाल मे उपस्थित लोकक संग राजा साहेब (जमीन मालिक) सेहो ताली बजौलनि। सत्यनारायण आ नूनबेटनी बाबू गले लगलाह। सत्यनारायण हुनकर पएर छूबि ललाट पऽ पदरज राखि देलखिन।
एहि बीच मिदनापुर के पाला टीम एकरा दोहराबय लागल आ उच्च , मध्यम करैत हुअए बिना अंत तक पहुंचने पाला के समाप्त करि देलन.
प्रतियोगिता समाप्त भेला पर ताम्र प्रशस्ति पत्रक संग राजासाहेब देवघरिया टीम केँ बहुत रास चीज दान कय देलनि। ई ताम्रपत्र किछ दशक पूर्व धरि देवघर मन्दिर मे छल, जकर जानकारी नूनबेतनी बाबूक भातिज श्री जितेन्द्र नाथ झा द्वारा देल गेल अछि, जे पहिने मन्दिर प्रशासन सँ जुड़ल छलाह।
ई टीम जखन घुरल त पता चलल जे भवप्रीता नंद जी निर्धारित समय अवधि मे वापस नहि आबय के कारण बीमार भ गेल छथि। ओ सभ बाट पर छल। ई टीम घुरैत देरी नूनबेटनी बाबू सँ अंक भरि नवयुवक सभ कानि रहल छल। बाद में लक्ष्मीपुर के जमींदार मालिक चंद्र नारायण देव के भाई (आनुवंशिक रूप स सम्बन्धित) देवजी के एहि घटना के जिक्र करैत ओ कहलनि: “हमरौ सुर बुडी गेलौ रोहों बाबू साहब! जोन नुनुबेटा नै आएतलों तब्बे ” (तोंअ घुरि क’ नहि अउता तँ’ हमर आवाज समाप्त भ’ जाइत,हउ देवजी!)
आइ देवघरक लोक , कृतज्ञ समाज , भवप्रीताक स्तोत्र पसिन करनिहार आ हुनक जानकार नूनबेटनी बाबूक गप्प नहि करैत छथि !
हालक किछु वर्ष पूर्व धरि एहि पाँतिक लेखक
भवप्रीता नंद द्वारा लिखित काइगो दर्ज़न पंद कए हस्तलिखित व हस्ताक्षरित पांडुलिपि
नूनबेटनी बाबूक जेठ भातिज स्वर्गीय स्व. खगेन्द्र नाथ झा के पास देखनै रहै ।
बड़का बात ई जे हुनकर दुनू भातिज खगेन्द्र नाथ आ जितेन्द्र नाथ आ दुनू पैघ भतीजी कमला आ हृदय माया; ओ अपन गीत-नृत्य परम्पराक वाहक छलाह। नूनबेटनी बाबूकेँ दूटा विवाहमे दूटा बेटी भेलनि मुदा ओ हुनका लोकनिक परम्पराकेँ आगू नहि बढ़ौलनि।
आइयो ‘जे कोरे छे लंका दोहों…’ केर कथा देवघरियाक लोक मे चर्चित अछि। अहां के एहन प्रेमी मिलत जे एहि प्रसंग के पकड़ि कऽ हँसा कs हँसा दैत छथिन्ह मुदा ई घटना केकरा संगे आ कतय भेल से ई नहि कहि सकैत छथिन्ह.
खैर, घरक जोगी जोगड़ा, गामक सिद्ध एहि भारतीय समाजक परम्परा रहल अछि। एहि परम्पराक एकटा दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम अछि नूनबेतनी बाबू उर्फ उपेन्द्र नाथक बिसरब। मुदा पीढ़ी-दर-पीढ़ी कखनहुँ हुनक यशगान खोजि लेत छै । विद्वान लोकनि ई यशोगाथ कए सदैव
लिपिबद्ध करैत रहला अछि ।
– उदय शंकर