महमहाई रातभर
झूमती
डाली लता की
महमहाई रात भर ।
शाम ढलते
ही मदिर सी
गन्ध कोई छू गई
नेह में
डूबी हुई सिहरन
जगी फिर से नई
प्यास
अधरों पर हमारे
छलछलाई रात भर ।
गुदगुदाकर
मञ्जरी को
खुशबुई लम्हे खिले
पँखुरी के
पास आई
गंध ले शिकवे-गिले
नेह में
गुलदाऊदी
रह-रह नहाई रातभर ।
फागुनी
अठखेलियों में
कब महावर चू गया
बांसुरी के
अधर चुपके
राग कोई छू गया
प्रीति
अवगुण्ठन उठाकर
खिलखिलाई रातभर ।
****
अवनीश त्रिपाठी