महबूब मेरा करता है कोई खता नहीं।
सारी ही गलतियां मेरी तुमको पता नहीं।
महबूब मेरा करता है कोई खता नहीं।
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मसरूफ़ सभी लोग घरों के हैं इस तरह।
अब कोई आए जाए किसी को पता नहीं।
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तू कैसा दीनदार है तू कैसा सिपाही।
करता नहीं है तन से अगर सर जुदा नहीं।
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शिकवा तो उनसे है जो हैं उम्मीद की जद में।
मैं जिनसे हूं मायूस मैं उनसे खफा नहीं।
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दो चार गालियों के सिवा कुछ न मिलेगा।
तू कर तो दे अहसान पर उनको जता नहीं।
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जो हौसलों को छोड़ कर मायूस हो रहे।
मिलती है उस बीमार को कोई शिफा नहीं।
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बेखौफ होके खिल सकें नजरों में “नजर” गुल।
इस दौर में अब रह गई ऐसी हवा नहीं।