महबूबा से
शायर-आशिक
जोगी-पागल
मेरे अनेक नाम हैं
कौन-सा नाम
पसंद तुम्हें!
ऐश, ख़ुशी
मौज, मस्ती
मेरे अनेक पयाम हैं
कौन-सा पयाम
पसंद तुम्हें…
(१)
हर लम्हा जितना
मसरूफ रहता हूं
मैं उतना ही
रहता हूं
फूर्सत में!
शायरी-मुहब्बत
आवारगी-बगावत
मेरे अनेक काम हैं
कौन-सा काम
पसंद तुम्हें…
(२)
मेरी आरज़ू
करने से पहले
मेरे बारे में
ठीक से
तुम जान तो लो!
ख्याल-ख़्वाब
बादल-चांद
मेरे अनेक आयाम हैं
कौन-सा आयाम
पसंद तुम्हें…
(३)
एक मासूमियत
की तलाश में
अब तक
भटकता रहा हूं
मैं दर-बदर!
सागर, पर्वत,
जंगल, सहरा
मेरे अनेक मुक़ाम हैं
कौन-सा मुक़ाम
पसंद तुम्हें…
(४)
उल्टी-सीधी
पट्टी पढ़ाई
मैंने अक़्सर
क़ौम के
नौजवानों को!
फहाशी, गद्दारी
कुफ्र, बे-अदबी
मेरे कई इल्ज़ाम हैं
कौन-सा इल्ज़ाम
पसंद तुम्हें…
(५)
मुझे कोड़े मारो,
संगसार करो
या ज़िंदा
दीवार में
चुनवा दो!
फांसी, ज़हर
गोली, सूली
मेरे अनेक अंज़ाम हैं
कौन-सा अंज़ाम
पसंद तुम्हें…
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Shekhar Chandra Mitra
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