माहताब भी कत्लेआम कर जाएगा!
तुम रोज इसमें इस तरह झाँका ना करो,
ये आइना है टूट कर बिखर जाएगा।
लबों पे अपने दर्द की हिचकियाँ न लाना कभी,
सुन के मंजर ये सारा दहल जाएगा।
तूने उठा रखी जो नज़रों से कायनात की ज़मीर,
कयामत में सरेआम मातम पसर जाएगा।
तू जो इसतरह चला करती है अदाओं में सिमट के,
माहताब भी किसी दिन कत्लेआम कर जाएगा।