महताब ने भी मुंह फेर लिया है।
जाने क्यूं आफताब की रोशनी मेरे घर आती नही।
जिन्दगी की दीवारों से दर्द की सीलन जाती नही।।
महताब ने भी मुंह फेर लिया है मेरे घर आंगन से।
अब चांदनी भी मेरी रातों को करती रुहानी नही।।
✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️
जाने क्यूं आफताब की रोशनी मेरे घर आती नही।
जिन्दगी की दीवारों से दर्द की सीलन जाती नही।।
महताब ने भी मुंह फेर लिया है मेरे घर आंगन से।
अब चांदनी भी मेरी रातों को करती रुहानी नही।।
✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️