महकती फिज़ाएँ लौट आई
तुम भी लौट आओ महकती फिज़ाएँ लौट आई
अब तो लौट आओ महकती फिज़ाएँ लौट आई
सूना आँगन सूनी बस्ती पड़े हैं ये सूने गलियारे
राह तकते हैं तुम्हारे आने की कबसे सूनो सारे
अब तो लौट आओ महकती हवाएँ लौट आई
हवा के झोंको से लहराने लगा है देखो उपवन
बिन तुम्हारे एक पल भी नहीं लगता है ये मन
अब तो लौट आओ महकती घटाएँ लौट आई
भूला है तूँ वायदा याद आती नहीं बातें हमारी
एक पल भी नहीं आती क्या तुम्हे यादें हमारी
अब तो लौट आओ महकती सदाएँ लौट आई
स्वरचित
( विनोद चौहान )