मस्त मौला (कहानी)
रात के लगभग 11ः30 बज रहे थे, मोहित शर्मा दिल्ली के एक रिजाॅर्ट में अपनी कालेज फ्रेंड ममता बोहरा के विवाह समारोह में शामिल हुआ था, विवाह के सभी काम अपनी गति से चल रहे थे जयमाला का कार्य सुचारू रूप से जारी था ममता के शुभचिंतक स्टेज पर आकर ममता और उसके पति को उनके आने वाले जीवन के बारे में अपने अपने तरीके से शुभकामनायें देकर धीरे-धीरे निपट रहे थे मोहित भी ममता को अपनी शुभकामनाएं देकर एक कुर्सी लेकर आराम से बैठ गया और समस्त वैवाहिक गतिविधियों का लुफ्त उठा रहा था कभी जयमाला का स्टेज तो कभी डी. जे. का डांस फ्लोर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता, डी. जे. डांस फ्लोर पर शादी में लोग तरह तरह डांसिंग स्टेप करके कुछ लोगों को हैरान कर रहे थे तो कुछ हास्य पूर्ण डांस कर शादी के माहौल को खुशनुमा बना रहे थे इन सब क्रियाकलापों के बीच अचानक मोहित का ध्यान एक ऐसे व्यक्ति पर गया, जो न तो घराती लग रहा था न ही बाराती लग रहा था और न ही वह रिजाॅर्ट का कोई कर्मचारी। लेकिन डी. जे. के डांस फ्लोर से लगभग 10-12 फिट दूरी पर अपनी मस्ती में नाच रहा था बेफिक्र मस्त मौला बनकर, उसकी उम्र भी लगभग 65-70 वर्ष रही होगी, और वो इस तरह बेसुध होकर नाच रहा था कि जैसे उसने अपने सारे गमों को किसी धुंए में उठा दिया हो और अपने उस पल को पूरी शिद्दत से आनन्द पूर्वक जीना चाहता हो।
काफी समय तक मोहित उसे देखता रहा। उस वृद्ध की वेशभूषा ऐसी थी जिसे देखकर कोई भी उसे हीन भावना से देखकर न जाने कैसी-कैसी भाव भंगिमा बनाता, और कुछ-कुछ ऐसा हो भी रहा था उसकी पैन्ट के दोनों पौंचे उधड़े हुए थे जैसे वह अभी-अभी साईकिल चलाकर आया हो और साईकिल के गेर में फंसकर उसके पौंचे उधड़ गये। उसकी शर्ट की दोनों आस्तीन के बटन गायब थे कपड़े भी इसने मैले कुचैले थे जिस पर सूखी मिट्टी साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी, ऐसा लग रहा कि न जाने कितने दिनों से उसके शरीर पर पानी न पड़ा हो, कही-कही पर किसी कालिख के दाग-धब्बे थे, तो कही-कही सूखी मिट्टी जिसमें रेत के अंश भी दिखाई पड़ रहे थे कभी वो नाच लेता तो कभी थोड़ा रूककर चारों तरफ देखने लगता, जहाँ चारों तरफ लोग कोई डी.जे. पर डांस का लुफ्त उठा रहे थे, तो कोई विवाह की सजावट के महौल में ढलकर वहाँ की वैकल्पिक सुन्दरता के साथ सेल्फी लेकर उन पलों को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे, कोई खाना खाने में मस्त थे, तो कुछ खाने से काफी दूर खड़े रहकर खाने के स्टाल पर भीड़ के कम होने का इन्तजार कर रहे थे इन सबके चलते इस वृद्ध का ध्यान ऐसे दूसरे वृद्ध पर गया जो अपने पोते की अंगूली पकड़े खड़ा था जिसका पोता बार-बार उसे खींचकर कभी गोल गप्पे के स्टाल पर, तो कभी चाउमीन की स्टाल पर, तो कभी आलू की टिक्की की स्टाल की तरफ ले जाने की जिद कर रहा था लेकिन उसके दादा भीड़ में जाना नही चाह रहे थे काफी देर बाद जब वह वृद्ध अपने पोते से हार मान गया तो अपने पोते साथ उसी भीड़ लग गया लाइन में। यह सब देखकर वह अजीब सा दिखने वाला शक्स बहुत जोर से रो पड़ा और अपने ही स्थान पर विभिन्न भाव-भंगिमाओं के साथ नाचने लगा।
उस अजीब से दिखने वाले शक्स के आँसुओं के दर्द को मोहित पढ़ने की कोशिश में लग गया, जो कभी कमर लचकाता, कभी दोनों हाथों की मुट्ठी बाँधकर दोनों हाथों की एक-एक अँगूली हवा में लहराते हुए भांगडा करने की कोशिश कर रहा था कभी बीच-बीच में रूक-रूककर उस दादा-पोते के स्नेह को देखता, फिर आँसू बहाता और फिर मस्त मौला बनकर नाचने लगता। मोहित बढे गौर से उस अजीब वृद्ध व्यक्ति की प्रतिक्रिया देख रहा था और उसके आँसूओं पढ़ने की कोशिश रहा था जहाँ मोहित ने उस अजीब से दिखने वाले वृद्ध के भीतर संवेदनाओं वह समन्दर देखा, जिसमे वह अजीब से दिखने वाला व्यक्ति न जाने कितने रिश्तों के द्वारा ठगा गया था, न जाने कितने रिश्ते बेटा-बेटी, भाई-बहन, पोता-पोती, बहू-बेटे इन तमाम रिश्तों का प्यार स्नेह उससे छिन सा गया था। मोहित ने उसके आँसुओं को पढ़ा तो उसने पाया कि एक बाप जो अपने जवान बेटे के साथ किसी तीर्थ पर जाना चाहता था, हरिद्वार के चार धाम की यात्रा के करते हुए चित्रकूट की मन्दाकिनी नदी पर बैठकर चन्दन घिसते हुए ये आभास करना चाहता था कि ‘‘गंगा जी घाट पर भई सन्तर की भी, तुलसीदास चन्दन घिसे, तिलक करें रघवीर’’। एक ससुर अपनी बहू के हाथों से गर्म-गर्म पतली-पतली रोटियाँ सिकवाकर उनमें घी लगवाकर मूँग की पतली सी दाल में भिगोकर खाना चाहता था, एक ससुर जो अपने बेटी-दामाद के मस्तक पर रोली-चन्दन का तिलक करके उसे विदा करना चाहता था, एक दादा-नाना जो अपने पोते-पोती और ध्योते-ध्योती के साथ हाथी-घोडा बनकर खेलना चाहता था, उनके साथ अपना बचपन दोहराना चाहता था, एक भाई जो अब बूढ़ा हो गया था, अपनी बूढ़ी हो चुकी छोटी और बड़ी बहनों के साथ बचपन वाली हर शैतानी को याद करके बचपन की हर याद को जीना चाहता था अपने दौर का एक मस्त मौला लड़का 65 वर्ष की अवस्था में खुद को फिर से जवान करना चाहता था अपने स्कूली दिनों में पहले घण्टे के बाद क्लास से नौ दो ग्यारह होना चाहता था जो अपने पोते-पोतियों को स्कूल की छुट्टी करने के लिए कभी बुखार का, तो कभी सिर दर्द का बहाना करना सिखाना चाहता था जो गर्मियों की छुट्टियाँ अपने मामा के घर पर बिताकर कभी खेतों घुसकर न जाने कितने गन्ने तोड़कर किसी एक गन्ने को खाना चाहता था, जो किसी दशहरे के मेले में रावण दहन के बाद मची भाग-दौड़ में खुद को खुद ही खोकर फिर अपने मम्मी-पापा को ढूँढना चाहता था, अपनी शर्ट की आस्तीन कभी आँसू तो कभी निकलती नाक को पोछना चाहता था, जो कभी अपने स्कूली दिनों के दोस्तों के साथ की हर मस्ती दोबारा जीना चाहता था वो बस अपने बचपन जवानी के हर लम्हें को फिर से जीना चाह रहा था। खुद मेे इतने सारी अभिलाषाओं और किरदारों का समन्दर समेटे वह अजीब सा दिखने वाला व्यक्ति बस नाचता जा रहा था, एक दम मस्त मौला होकर
मोहित उस अजीब से दिखने वाले व्यक्ति के भीतर छिपे किरदारों से मिल ही रहा था कि अचानक किसी की तेज आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ क्योकि मोहित की तरह अन्य लोगों का भी ध्यान धीरे-धीरे उसकी ओर गया तो बात दुल्हन के पिता यानि ममता के पिता तक पहुँची जिन्होने बाहर रिजाॅर्ट के मुख्य द्वार पर बैठे सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया गया और उसे कुछ हडकाते हुए स्वर में ममता के पापा ने कहा, “तुम्हें यहां किस लिए रखा गया है कोई भी प्रोग्राम घुस जाए, चलो तुरन्त इसको गेट के बाहर करो“
ममता के पापा ने सिक्योरिटी गोर्ड को कुछ इस अंदाज में डाँटा कि सिक्योरिटी गार्ड के मुँह में कुछ भी कहने को शब्द नहीं थे बस सिर नीचे झुकाकर धीरे से साॅरी बोलकर उस अजीब से दिखने वाले मस्त मौला व्यक्ति की वाहें पकड़कर खींचने लगा, तभी वह अजीब से दिखने वाला व्यक्ति ममता के पापा से माफी मांगने लगा, क्योंकि वह उस एक पल में अपनी पूरी जिन्दगी जीने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सुरक्षा गार्ड ने उसे पकड़कर सीधे गेट के बाहर कर दिया। लेकिन गेट के बाहर पहुँचकर भी उस अजीब शक्स को ज्यादा देर तक इस अपमान की वेदना नहीं रही, मोहित जिसने उस अजीब शक्स में एक मस्त मौला मलंग देखा था उसकी प्रतिक्रियाओं को गेट के बाहर पहुंच कर देखने पहुँच गया, वह अजीब शक्स बाहर आकर भी नाचने से माना नहीं रिजाॅर्ट की लाईटों की रोशनी रिसोर्ट के बाहर भी काफी दूर तक फैली थी और डी. जे. का शोर भी काफी दूर तक सुनाई दे रहा था वह अजीब शक्स बेफिक्र मदमस्त बिना किसी की फिक्र के ही कौन उसे देख रहा है कौन नहीं इन सब बातों से अंजान बस नाचता जा रहा था काफी देर तक नाचने के बाद जब उसका बूढ़ा शरीर थकान से चूर हो गया तो अचानक वह गायब हो गया, और मोहित की आँखों से ओझल हो गया था एक रिश्तों का ठगा अजीब किरदार मस्तमौला।
लेखक स्वतन्त्र गंगाधर
अन्त 23.01.2020