*मस्ती जग में छाई (बाल कविता)*
मस्ती जग में छाई (बाल कविता)
————————————–
अत्याचारी शासन था
कोहरे का अन्धा-बहरा
थर-थर काँप रहे सब उससे
डर था उसका गहरा
एक बजे फिर मरी-मरी-सी
धूप निकलकर आई
जैसे आजादी का झंडा
हाथोंं में हो लाई
सूरज दादा ने फिर झाड़ा
भाषण लंबा-चौड़ा
बेचारा कोहरा तब डर कर
नभ से भागा-दौड़ा
खिली धूप में जनता ने
फिर जम कर खुशी मनाई
सबने खाई धूप
ढेर-सी मस्ती जग में छाई
———————————
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
Δ