मस्अला क्या है, ये लड़ाई क्यूँ.?
मस्अला क्या है, ये लड़ाई क्यूँ.?
आज आंगन में चारपाई क्यूँ.. .?
छोड़ जाना था रास्ते में तो,
आग पानी में फिर लगाई क्यूँ.?
दौरे हाज़िर का फ़लसफ़ा कैसा,
कर रहे सब ख़ुद-नुमाई क्यूँ..?
ख़त्म कर दो न अब ये तक़रारें,
वक़्त बे-वक़्त जगहँसाई क्यूँ.?
लिखने बैठे तो थे ग़ज़ल हम पर,
फिर अचानक से ये रुबाई क्यूँ.?
ऐब मुझमें भी तो मुअय्यन हैं,
खामखां हौसलाअफजाई क्यूँ.?
पंकज शर्मा “परिंदा”