मलता रहा हाथ बेचारा
मलता रहा हाथ बेचारा ।
नदी किनारे एक पेड़ पर रहता था एक बंदर प्यारा
पेड़ के नीचे बहती थी नदी की अविरल जल-धारा
फलता था स्वादिष्ट फल सारा उस विशाल पादप पर
लेकिन कोई अन्य पशु नहीं आता उस सरिता तट पर
खाता था जामुन फल तोड़कर कुछेक फेंक देता था
चुन-चुनकर उस फल को एक घड़ियाल खा लेता था
एक सुबह प्यार सहित मगर ने बंदर से आकर बोला
इतने बड़े विशाल पेड़ पर कैसे रहते हो तुम अकेला ?
‘नहीं कोई संगी-साथी बिल्कुल एकाकी जीवन है मेरा
दिगर पशु के अभाव में,सुख से बीतता न शाम सवेरा
यहां नहीं कोई थलचर ऐसा जिसके संग साथ निभाए
किस्मत में शायद यही लिखा भागकर कहां हम जांए?’
सुन मर्कट की बात मगर ने हर्षित स्वर में बोला
मुझे ही अपना साथी मान लो मैं भी हूं बम बोला
मैं भी आकर नदी किनारे अकेला दुखी बहुत रहता हूं
तेरा फेंका उच्छिष्ट फल खाकर मैं अपना पेट भरता हूं
उसदिन जामुन रसीला मैंने दिया था अपनी पत्नी को
खाकर हो गयी बाग-बाग उत्सुक है तुझसे मिलने को
जब देता हूं जामुन उसको,खा,तेरा नाम भजती है
तुझसे मिलने का जिद मुझसे रोज सदैव करती है
सुनकर मगर की बात बंदर का दिल प्रसन्न हो जाता
कपि का मन भी उस बेचारी से मिलने को हो जाता
बंदर बोला अवश्य चलुंगा प्यारी भाभी जी से मिलने
अन्दर-अन्दर दिल घड़ियाल का खूब लगा था खिलने
मगरमच्छ था बहुत चतुर उसने कपट-पाश एक फेंका
एक दिन कर राजी बंदर को उसने अपनी रोटी सेंका
बीच नदी में ले जाकर घड़ियाल असली बात बतायी
कोमल दिल खाने को तेरे भाभी ने है तुझको बुलायी
बंदर ने झट बोला भैया यह बात पहले क्यों न बताया
मैं ने तो अपने दिल को छोड़कर उसी पादप पर आया
चलो, करो तुम जल्दी,अब उस पादप के पास ले चल
दिल को लेकर साथ भाभी से मिलने को हूं मैं वेकल
दिल के साथ कुछ मीठे-मीठे फल उपहार में, मैं दूंगा
भाभी से उसके एवज में उनका प्यार भरा दिल लूंगा
सुन मर्कट की बात मगरमच्छ खुशी से झूम गया
बीच नदी से तुरत पेड़ की तरफ तेजी से मुड गया
आते ही तट पर मगरमच्छ की पीठ से बंदर कूदा
तेजी से चढ़ गया पेड़ पर,सोचा,अब न जाऊं दूजा
पेड से बोला मर्कट -ओ मगर, जल्दी यहां से जाओ
अपना यह घड़ियाली आंसू जाकर कहीं और बहाओ
सुन बंदर की बात मगर ने खूब सोचा और विचारा
होकर अति दुःखी वहां पर मलता रहा हाथ बेचारा