मर रही हूं मैं
2122 1212 22
दर्द से यूं गुजर रही हूं मैं।
यार हर पल ही मर रही हूं मैं।।
इश्क ने कर दिया निक्कमा कुछ।
कुछ नज़र से उतर रही हूं मैं।
टूटकर जितना तुमको चाहा था।
टूटकर ही बिखर रही हूं मैं।।
तुमने वादाखिलाफी की जबसे ।
हां ये सच है मुकर रही हूं मैं।।
नींद टूटी तुम्हारे सपने से।
दिल है बेचैन डर रही हूं मैं।।
बढ़ता जायेगा और खारापन।
अश्क सागर में भर रही हूं मैं।।
झूठी मुस्कान कह रही मुझसे।
तुमको कितना अखर रही हूं मैं।।
दिल खुले आसमान में घुटता।
अपने ही पर कतर रही हूं मैं।।
नाम रौशन है जलने वालों से।
रोज़ ताजा ख़बर रही हूं मैं।।
तुमको आना हो जब भी आ जाना।
मुन्तजिर हूं ठहर रही हूं मैं।।
ज्योति अब आइना भी पूछेगा।
किसकी खातिर संवर रही हूं मैं।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव