मर्मस्पर्शी रचना :-वेदना
मनुज-मनुज में रार ठनी है।
कैसी ये तलवार तनी है।।
अपना वर्चस्व बनाने को।
भूखा बच्चा बिलख रहा है ।
अपनी भूख मिटाने को।।
पास पड़ी है उसकी माता..
है निष्प्राण और नि:शब्द ।।
रार नहीं ये द्वन्द छिड़ी है ।
सब से आगे आने को।।
मनुज-मनुज में रार ठनी है।
कैसी ये तलवार तनी है।
अपना वर्चस्व बनाने को।।
लाल रंग से धूल गयी है धरती ।
इसका समाधान लाने को।।
कहीं धर्म और जाति का है रार।
कहीं है प्रश्न अत्याचार ।।
सारा समुदाय जूझ रहा है।
मनुज की मनुजता टूट रही है।।
जातिवाद मिटाने को…
मनुज-मनुज में रार ठनी है।
कैसी ये तलवार तनी है।।
कहीं प्रतीत होता दृश्य महाभारत का।
कहीं होता प्रतीत पापाचार ।।
मनुज-मनुज में रार ठनी है।
कैसी ये तलवार तनी है।।
मिटने और मिटाने को