** मर्मज्ञ **
डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक * अरुण अतृप्त
मर्मज्ञ
मैं हमेशा से अपने भीतर के साम्राज्य पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर समस्त विश्व में स्वयं के भीतर के राज्य का अधिकारी बनने की सोचता रहता था। सोचता था कि जैसे एक राजा अपनी प्रजा का पालक और रक्षक होता है। अपने राज्य में हर वर्ग के लोगों की सुख समृद्धि की चाहना करता रहता है, किसी को कोई दुख परेशानी न हो।
बाहरी आक्रमणकारी शत्रु राज्य व् जनता को नुकसान ना पहुंचा सके। अपने मंत्रिमंडल में कोई ऐसा भ्रष्ट मंत्री नही पनपे जो दीमक
की तरह राज्य को खा जाए। वही राजा भेस बदलकर भी प्रजा के बीच जाकर उनके राजा के सही/गलत कार्यव्यवहार के बारे में
पूछताछ भी करता रहता है।
उसी अनुसार मेरा भी अपनी देह, इन्द्रियों, पंचमहाभूत इन्द्रिय विषयों इत्यादि पर शासन हो, तपस्या में बैठ आत्मा से भीतर के
साम्राज्य पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान शिव से अपना परम ध्यान जोड़ कर साकार वतन में रहते हुए भी
सूक्ष्म रूप से शरीर के आज्ञाचक्र स्थित आत्मा के द्वारा स्थूल शरीर की आंखे, कान, नाक, जिव्हा, हाथ, पैर, त्वचा इन्द्रियों के वि-कर्म को
दृष्टत्या अपने वश में रख सकूँ। मुझे ये तात्विक समझ तो आ ही जानी चाहिए कि इन्द्रिय कर्म में उनका कोई दोष नही होता है। स्थूल कर्मेन्द्रियां पूर्णतः सूक्ष्म
आत्मा के वश में होती हैं। जैसा आत्मा इनको आदेश देती है वह वैसा ही कार्य करती हैं।
तो ये तो हुई इस लघु कथा की लघु प्रस्तावना। दोस्तों देखिये ये जो भी लिख दिया मैने ये एक मर्मज्ञ भाव से प्रेरित होकर लिखा । मेरी एक सखी (काल्पनिक ) जो मुझे ये सब लिखने को प्रेरित करती रहती है और खुद कुछ जानती नही । उसका मानस न जाने कैसे कैसे प्रश्न लिए मेरे मानस से प्रतिपल झूझता रहता है उसकी जीवन व्यथा
मेरी मर्मज्ञता को झकझोरती रहती है जीवन तो ऐसा ही है इसमें कोई भी ठोक पीट न्यायोचित जान नही पड़ती । सब कुछ तो प्रभु आधार है ।
चलिए छोड़िये.. कर्म ही धर्म है अन्य सब व्यर्थ है तो एक छोटी सी सखी है मेरी, एक फ़रिश्ते जैसी, विचार, उसकी पहचान हैं । चुप रहना मानो उसके लिए सजा omg बस पूंछो मत, एक दिन लाल रंग की फ्राक क्या डाली उसको तो जैसे पर लग गये मगर उसकी क्लास का एक दोस्त उसको देख इतना लड़ा इतना लड़ा की उसको रुला के ही माना , मेरी सखी ने सब रो रो के ये कथा मुझे सुनाई बोली में कोई गंदी लड़की हूँ क्या? फ्राक डालने से कोई गन्दा हो जाता है क्या ? वो नितेश मुझ से इतना लड़ा , ये मत डाला कर इतनी छोटी चटक लाल , देखने वाले तुझे ( वो ) सोचेंगे और न सेक्सी सेक्सी बोलेंगे और न जाने क्या क्या उसके गुलाबी कपोल रो रो काले पड गये । फिर मैंने उसको उपरोक्त सब कुछ समझाया, आदमी की सोच और औरत की सोच में कितना अन्तर आदि आदि कसम से , उसको सब मालूम तो था मगर याद न था उसकी कजरारी आँखों में सपने तैरने लगे । यकीं मानिये एक विदुषी नारी जैसी समझ लिए वो फ़रिश्ता , एक दम सामान्य हो गया, फिर से उसके प्रश्न शुरू , मुझे हंसी आगयी मैं बोला तू ठीक तो है तो पता है , क्या बोली वो , तुम जादूगर हो क्या? मैं जोर जोर से हँसने लगा, और वो भी मेरे साथ, उतनी ही मुखरता से हँसने लगी । बोली, तुम जादूगर हो, तुम को भगवान जी ने मेरे पास भेजा है, मुझ से दूर कभी मत जाना, मुझे तुमसे बहुत सी बातें सीखनी हैं, और और उसके नयन भर आये ।
मैं हतप्रभ उसकी नयनो की पलकों पे अटके मोती देखता रहा और बो मेरी आँखों से बहता दरिया …………. ….**************************************************************