मर्ज
मर्ज
आजादी से पहले, आजादी से आज तक,
बदलते रहे ईलाज, पर मर्ज वही आज तक।
ये मुल्क है जनाब, थे एक नहीं कल भी ,
हाँ अब भी बिखरे हुए, कि दर्द वही आजतक।
टुकड़े हुए थे देश के,जिस शक ओ शुबहा पर,
जमा हुआ है रूह में , वो गर्द अभी आज तक।
बात यूँ है अमन की , मिट गया जो भी चला ,
रह गया है बाकी वो, कर्ज अभी आज तक।
अजय अमिताभ सुमन