मर्चा धान को मिला जीआई टैग
मर्चा धान को मिला जीआई टैग
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बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में उगाए जाने वाले मर्चा धान को जीआई टैग मिलना सुखद है । इस धान से तैयार चूड़ा के स्वाद और उसमें मौजूद खास अरोमा की ख्याति सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी है। चंपारण की यह ऊपज अपनी मनमोहक सुगंध के लिए जाना जाता है । यहाँ घर आए मेहमानों और मित्रों को दही के साथ मर्चा चूड़ा खिलाना इसकी ख्याति को प्रतिष्ठित करता है। काला नमक चावल के भात और मर्चा धान के चूड़े का कोई विकल्प नहीं है । मर्चा चूड़ा भारत सहित विदेश में भी अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। मर्चा धान की खेती सावन के महीने में शुरू की जाती है और इसे नवंबर आखिरी तक तैयार लिया जाता है। इसकी पैदावार कम होती है । इसका चूड़ा बिंदी की तरह दिखता है । सफ़ेद और सुगंधित । इसे खाने के कई तरीक़े हैं । प्रायः इसे दही और चीनी के साथ मिलाकर खाया जाता है । ऊपर से भरुआ लाल मिर्च अचार या नमक व हरा मिर्च इसके स्वाद में चार चाँद लगा देता है । कुछ लोग इसे काले चने के छोले के साथ खाते हैं । गुड़ के साथ सूखा भी खा सकते हैं । चूड़ा पकौड़ी भी । कुछ लोग इसे नॉन वेज के साथ भी चापते हैं । सामान्य चूड़े से यह थोड़ा भारी होता है और अलग दिखता है । आप जैसे चाहें खायें, इसके स्वाद को भूल नहीं पायेंगे। मुझे बहुत पसंद है । यह मेरे ससुराल नरकटियागंज से पाँच किलो के झोले में पैक आ जाता है ।मेरे यहाँ अभी है । उसका फ़ोटो लगा रहा हूँ । मौक़ा लगे तो अपने देश की इस महक को एक बार ज़रूर महसूस करें।जो खाए हों , वह अपना अनुभव ज़रूर साझा करें ।
मर्चा धान की खेती में लगे हमारे प्यारे किसानों को बहुत बहुत बधाई । आशा है इससे उनके श्रम का उचित पारिश्रमिक प्राप्त होगा ।
@ सूर्यनारायण पाण्डेय