मर्कट मार्जार उपाख्यान
“मर्कट मार्जार उपाख्यान”
बस से उतरकर मैं जल्दी जल्दी चल रहा था। हरिलाल (मंत्री जी के रसोईया ) ने वादा किया था कि वह मंत्री जी के कमरे की खिड़की थोड़ी खुली रखेगा।रास्ते में बहुत बड़ा आम का बगीचा था जिसे मुझे पार कर सही वक्त पर पहुंचना था। बगीचे की पगडंडी में अपने आपको छुपाते चलते हुए अचानक मेरा ध्यान एक बंदर और दो बिल्लियों पर टिका । जाना पेहचाना दृश्य…अरे हाँ…..,देखा है इस दृश्य को कितने बार …. अनेकों किताबों में…. बचपन में।
बंदर के हाथ में तराजू…नजर में लालच और ठगने का मिश्रित रूप। तराजू के दोनों बाजू में रोटी के दो टुकड़े …. रोटी के दो टुकड़ों पर चार बेचैन आंखें।
मैंने चिल्लाते हुए कहा”मुझे पता है, ये बंदर तुम दोनों को कुछ नहीं देगा, वक्त रहते सुधर जाओ”। मैंने सोचा था कि इस कहानी का शेष भाग शायद बदल सकुं। बंदर को गुस्सा दिला दूं तो वो रोटी को फेंक कर पेड़ पर चढ़ जाए…या…. दोनों बिल्लियांँ सावधान हो जाएंॅ और रोटी उसके हाथों से छिन ले…..मगर बंदर का पूरा रोटी खा जाना और बिल्लियों का ठगना तो नियती का पूर्व निर्धारित था
“ये हमारे बिच की बातें हैं , तुम्हें माथापच्ची करने कि जरूरत नहीं है” एक बिल्ली की यह टिप्पणी ने मुझे आघात दिया। मैं उन्हें वैसे ही छोड़ , आगे बढ़ने लगा।
मंत्री जी झरोखे में अपने कैमरा को टिकाए , छुपकर बैठ गए। एक घंटे के अंतर में बारी-बारी करके दो लोग कमरे के अंदर आए। उनके हाथों में रूपयों से भरा बैग था। उन्होंने खोलकर मंत्री जी को दिखाया। उनकी धीरी आवाज में से ‘निर्वाचन’ ‘टिकट’ , यह दो ही शब्द सुनाई दिया। मैं यथासंभव
तस्वीरें खींच कर वापस आ गया। वापसी में आंखें उस दृश्य को ढूंढ रही थी। सोचा कितनी आसानी से हम ठगजाने को ग्रहण कर लेते हैं।
घर वापस आ कर सीधा डाॕर्क रुम में चला गया। फोटों को पोजिटिव जो करना था।काम करते करते देर रात हो गई। कब सो गया पता ही नहीं चला।
सबेरे आँख खुलते ही ,भागा समाचार पत्र पढ़ने के लिए। अरे ! ये क्या , किसी तिसरे को टिकट मिला है। मेरे अंदर से आए अट्टहास से मैं खुद ही चौंक गया।
डाॕर्क रुम में चला गया, फोटों को देखने लगा।उस फोटों में मंत्री जी और दो महानुभाव नहीं थे।यहाँ मुझे एक मर्कट और दो मार्जार दिख रहे थे।
*****
पारमिता षड़गीं