मरघट (5)
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धन-धान्य वैभव को जिसने दोनों हाथों से समेटा है ।
सिवा दुग्ध सी मृदु शैया पर कभी नहीं जो लेटा है ।
देखो तो आज वही मरघट में कैसे पड़ा है अकेला,
असहाय सोया पाँव पसार वह श्वेत कफन लपेटा है ।
? ? ? ? –लक्ष्मी सिंह ? ☺
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धन-धान्य वैभव को जिसने दोनों हाथों से समेटा है ।
सिवा दुग्ध सी मृदु शैया पर कभी नहीं जो लेटा है ।
देखो तो आज वही मरघट में कैसे पड़ा है अकेला,
असहाय सोया पाँव पसार वह श्वेत कफन लपेटा है ।
? ? ? ? –लक्ष्मी सिंह ? ☺