ममता का सच
ममता मन की अनुभूति प्रिये अपनेपन का प्रिय मास यही।
रहती ममता मन प्रांगण में विचरे वह बाहर खोज रही।
अपने मन के अपने ज़न के अपने शिव के वह पास खड़ी।
अति रक्षक सा वह दौड़ रही दिल से वह सुन्दर सौम्य बड़ी।
इसको न समेट प्रचार करो य़ह मोहक दिव्य धरोहर है।
य़ह सभ्य सदा अति पावन है शुभ रंग अबीर मनोहर है।
जिसकी ममता मधु चेतन है वह ईश्वर के समतुल्य सदा।
जिसमें ममता प्रिय मोहन है उसका हँसता मधु वक्ष सदा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।