मन_की_बात मैं ,पढाई और फेसबुक
मन_की_बात मैं ,पढाई और फेसबुक
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लम्बे समय से सोच रहा हूँ इस विषय पर कुछ लिखने का ….. लगभग 6-7 महीने हो गए सोचते हुए…..पर कोई योग ही नही बन रहा । आज शायद योग बन रहा हैं मन की बात कहने का… बारिश भी हैं।
फेसबुक की दुनिया बहुत व्यापक हैं। खूब लोग जुड़े हुए हैं । अधिकांश परिचित हैं ,अनेक अपरिचित भी।परिवारजन भी हैं , रिश्तेदार भी हैं, बचपन के मित्र भी। कई बार मीठा उलाहना मिलता हैं कि आपने अपनी फेसबुक वॉल को क्या बना रखा हैं, केवल पढाई और कविताएं…. और कोई बात हैं ही नही क्या ?
कोई बहुत आत्मीय हितैषी हो तो यह भी कह सकता हैं कि एक थेई हो काई कवि…. (एक आप ही कवि हैं क्या इस दुनिया में )।जो शिक्षा के क्षेत्र से सर्वथा अछूते हैं ,उनके लिए लगातार ऐसी पोस्ट्स कभी कभार बोरिंग भी होती होंगी।
फेसबुक पर भेजने योग्य बहुत से विषय और बातें हो सकती हैं। जो मर्जी हो पोस्ट कर सकते हैं।
घर परिवार के फोटो, घूमने फिरने की जानकारियां, चुटुकले, शेरो शायरी , राजनीतिक विचार विमर्श, टिप्पणियां, प्रतिष्ठित और राजनीतिक लोगो के साथ सेल्फियां, विभिन्न सामाजिक और संगठनात्मक दायित्व और उनके कार्यकलाप ….अनंत विस्तार हो सकता हैं विकल्पों का ।
पर अपने को स्वयं ही इसकी मर्यादा तय करनी चाहिए कि हम क्या पोस्ट करें और क्यों पोस्ट करें।
फेसबुक को किसी मिशन पर चलाना यह श्रीमती इंदु जी आचार्य से ( Endu Ji Aacharya) सीखने को मिला और जीवन को किसी अच्छे मिशन में लगाना …….यह मुझे आदरणीय विजय जी शर्मा ( Vijay Ji shrma ) से सीखने को मिला ।
भाईसाहब अच्छे मोटिवेशनल गुरु जैसे हैं।
वे कहते हैं समाज जीवन के ,राष्ट्र जीवन के अच्छे काम करने के अनेक ट्रेक खाली पड़े हैं, सुनसान हैं । उन पर चलने का प्रयास करना चाहिए, विजय निश्चित हैं। वे व्यंग्य में कहते हैं – राजनीती,बेईमानी ,भ्र्ष्टाचार, गलत काम , स्वार्थपरता जैसे ट्रेको पर भारी भीड़ हैं ,मेला सा है , कही नम्बर नही लगेगा।
अच्छे पथ, नये पथ पर चलो …कोई कम्पीटिशन नही।अनेक रास्ते हैं जिन पर जो चलना प्रारम्भ कर देगा वही अग्रेसर हैं। बात जम गई और अपन ने पथ चुना पढ़ाई व साथ साथ कविता लिखने का सतत -सकारात्मक क्रियेटिविटी का।
2020-21 में जब नया नया फेसबुक पर था, पढ़ाई और शिक्षा सम्बंधित पोस्ट डालता तो लोग हँसते भी थे, यहां पर भी पढाई की बातें…वो भी कविताएं की बातें और फोटुएं ….गजब हैं।
पर एक दो देख कर दूसरे की …दूसरे को देख तीसरे की…. झिझक मिटती गई ।
अब यह संख्या बहुत बढ़ गयी हैं जो कवि व कम्पीटिशन की तैयारी करने पर गर्व करते हैं और गर्व से इस मंच से अपने पढाई की रचनात्मक और अच्छी बातें शेयर करते हैं।
मूल बात यह है कि फेसबुक या सोशल मीडिया पर पोस्ट का उद्देश्य और लाभ क्या हैं?
आत्म प्रशंसा के लिए, ….प्रोपेगेंडा ….अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए…लोकेषणा…नही जी। बिलकुल नही, ऐसा करना हो तो बहुत से राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ फोटो शेयर किए जा सकते हैं या और भी अनेक आईडिया हैं, हो सकते हैं।
फेसबुक मेरे लिए टाइम पास मात्र नही है, एक मिशन की तरह है। मेरे द्वारा किये हुए प्रयोग सबके सामने लाने से उन प्रयोगों का व्याप बढ़ता है ।अच्छी बातें बाटेंगे तो अच्छाई बढ़ेगी, बुरी और नकारात्मक की लाइन के सामने सकारात्मकता की लाइन लम्बी होगी ।
एक प्रतिवेदन…
सोशल मीडिया विशेषतः फेसबुक से माध्यम से जो सत्कार्य हुए हैं उन्हें जानेंगे तो आपको भी अच्छा लगेगा और इसका महत्व समझ आयेगा।
१ कविताएं लिखने का उद्देश्य …
मित्रों के सम्मान में यह एक अच्छा प्रयोग था । कार्यक्रम और इसका उद्देश्य शेयर न करते तो बात एक या कुछ मित्रों तक ही सीमित रहती पर सोशल मीडिया के सदुपयोग से यह कारवाँ बढ़ता गया और आपको जानकर अच्छा लगेगा कि इस बार मुझे कई प्रकार के प्रमाण पत्र भी मिले हैं में शुद्ध परिवार भाव से ,बिना आदेश और बिना बजट के। सोशल मीडिया के सहारे ही हुआ हैं।
२ ऑनलाइन प्रतियोगिता….
… सामान्य ज्ञान और भारत भक्ति का अद्भुत संगम ।मेने अपनी पढ़ाई के साथ साथ कई प्रकार के कार्यक्रम भी आयोजित किए । मेरे द्वारा प्रतियोगिता जो आयोजित की गई उसमे कई मित्रो ने भाग भी लिए। अच्छाई का पेटेंट और पुरस्कार क्या करना हैं, बस अच्छे काम बढ़ते रहने चाहिये।
३ पर्यावरण संरक्षण……
पर्यावरण की बात करें तो कई तो हम सब जने मिलकर कई पौधे भी लगाए और वो भी सभी के सहयोग से हमारा एक ही उद्देश्य है कि हमे शुद्ध हवा व ऑक्सीजन की पूर्ति हो सके इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने चाहिए।
४ कोरोना काल मे कार्य-
कोरोना काल मे मेरे जितना हो सका उतना जरूर किया हमने घर घर तक सर्वे भी किया और फेसबुक के माध्यम से कई प्रकार की जानकारी भी शेयर भी करते रहे। और भी बहुत सारे लाभ और आउटपुट सोशल मीडिया के हुए हैं ।
५ एक और काम याद आया
की हम कई प्रकार के कवि सम्मेलन आयोजित हुए उसमे भी भाग लेने का मौका मिला।
बिना खर्चे का अभियान….. Facebook , whats app Instagram. के माध्यम से अभियान चलाया ,सबसे आग्रह किया तो अनेक हमे रक्तदान भी करना चाहिए यह परंपरा भी शुरू हो गई । लगभग 50 मित्रों के प्रति उत्तर तो चार-पांच दिन में आ गए थे कि हमने भी अपने क्षेत्र कही प्रकार के अभियान चलाए की कोई भूखा ना सोए में
कुल मिला कर फेसबुक का सार्थक उपयोग हो रहा हैं, एक मिशन की तरह हो रहा हैं।
बड़ी संख्या में ऐसे अच्छे उदाहरण खड़े होने से समाज का विश्वास भी जगा , की आज अपने शिक्षा के क्षेत्रों में आगे बढ़ाने के प्रति सकारात्मक वातावरण दिखता हैं। और ऐसे मित्रों की संख्या भी लगातार बढ़ रही हैं जो अपने कार्यो से पढाई शब्द की गरिमा बढ़ा रहे हैं, इसे पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। मेरा मानना हैं कि फेसबुक इत्यादि सोशल मीडिया केवल टाइमपास न होकर एक अभियान की तरह हैं ।
शंकर आँजणा नवापुरा
30 मई,2021
#कमरा_डायरी
#शूद्र_को_शास्त्र_पढ़ने_का_पूरा_अधिकार_था
स्कुल शिक्षा से ही हमें यह बहुत बताया गया है कि प्राचीन काल में शूद्रों को शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं था ।
पता नहीं कहां से यह गलत विचार आया, पनपा और आगे बढ़ता गया । किसने यह भ्रम पैदा किये और सामाजिक विभाजन की नींव रखी।
वास्तव में तो प्राचीन काल में सभी को अध्ययन का अधिकार था । प्रमाण देने के लिए ही यह पोस्ट लिखी हैं। अपने प्राचीन धर्म ग्रंथों में एक विशेष पक्ष होता है जिसे फलश्रुति कहते हैं । किस शास्त्र को अथवा किस मंत्र को पढ़ने से क्या लाभ मिलता है इसका उल्लेख संबंधित शास्त्र या मंत्र में होता है । उदाहरण के लिए सामान्य रूप से घर में बोली जाने वाली आरती में भी फलश्रुति बताई जाती है जैसे अंधन को आंख मिले ,
कोढन को काया , बांझन को पुत्र मिले ,
निर्धन को माया ..यह फलश्रुति हैं।
ऐसे ही संस्कृत भाषा में लिखे गए सब ग्रंथों में फलश्रुति का भी उल्लेख होता है
अधिकांश ग्रंथों में फलश्रुति का उल्लेख संबंधित मंत्र के जाप की संख्या अथवा उसके साथ के विभिन्न प्रयोगों पर आधारित होता है । (जैसे रुद्राभिषेक जल से करें, दूध से करें, गन्ना रस से करें, शक्कर से करें ,सब का अलग अलग परिणाम होता है यह एक विज्ञान आधारित प्रक्रिया है। हालांकि यहां पर इसका विस्तृत विवेचन करना प्रासंगिक नहीं है।)
ऐसे ही मंत्र जाप और स्त्रोत पाठ से होने वाले परिणामों अर्थात फलश्रुति का भी उल्लेख मिलता है ।
ऐसा ही एक शास्त्रीय ग्रंथ है विष्णु सहस्रनाम जो भीष्म पितामह और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच का संवाद है ।
धार्मिक क्षेत्र में विष्णु सहस्त्रनाम का बड़ा महत्व है। इसके अंत के श्लोकों में इसकी फलश्रुति दी गई है ।
यह विष्णुसहस्रनाम का 123वां श्लोक हैं जिसमें लिखा है वेदांतगो ब्राह्मण: स्यात क्षत्रियो विजयी भवेत् ।
वैश्य धन समृद्ध: स्यात, शुद्र :सुखम वाप्नोति।।
अर्थात इस विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से अथवा कीर्तन करने से ब्राह्मण वेदांत में निष्णात हो जाता है क्षत्रिय युद्ध में विजय प्राप्त करता है वैश्य व्यापार में धन पाता है और शूद्र सुख को प्राप्त होता है।
यह फलश्रुती आपके तर्क वितर्क का विषय हो सकती है परंतु यह तो स्पष्ट है कि शूद्र को भी यह पढ़ने का कीर्तन करने का अधिकार था । फिर यह मनगढ़ंत कल्पना कहां से आई थी की शुद्र शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते प्राचीन काल से लेकर महाभारत काल तक तो ऐसी कोई रोक हिंदू धर्म में कभी भी नहीं रही ।
अरब आक्रमण के बाद जब से धर्मांतरण का कार्य प्रारंभ हुआ उसके बाद संभवत यह विकृति आई हो क्योंकि हम सब जानते हैं साम दाम दंड भेद सब प्रकार के उपायों द्वारा अरब आक्रांताओं और मुगल शासकों द्वारा भारत में धर्म परिवर्तन का कार्य बड़े पैमाने पर हुआ। चारों वर्णो को शास्त्र पढ़ने का पूरा अधिकार था,इसका यह पुख्ता प्रमाण हैं। भारत को कमजोर करने के उद्देश्य से फैलाये गये ऐसे अनेक भ्रामक तथ्यों का सप्रमाण खंडन आज की महती आवश्यकता हैं।
————————12 जून,2021 जालोर————————-