मन
मन
तेरा उदास चेहरा
जाने क्या – क्या कहता है
क्यों तेरा मन !!
इतना विचलित रहता है।
एक युग जिया है तूने
आसपास सबको देखा है
तेरे चाहने से कब क्या हुआ ?
क्यों तू इतना व्यथित रहता है!।
यह धुंधली धुंधली सी आँखें
चेहरे पर पड़ी झुर्रियां
सादगी भरा तेरा जीवन
कई सदियों का तेरा अनुभव
तुझको चुप रहने को कहता है।
सब कुछ जानकार भी
क्या तुम कुछ कर पाओगी
खुल जाए चिट्ठा भविष्य का
तो क्या!!!
तुम उसको बदल पाओगी
फिर भी संशय में मन
क्यों तुम्हारा रहता है।
हरमिंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश )