मन
मन (मन ने मन को खोज लिया)
मन (गीत)
मन ने मन को तोड़ दिया
मन से मन को जोड लिया
तुम रहते थे जिस मन में
उस घर को जोड दिया
जब तक तुम जब आते
सब कुछ ही मोड लिया
मन तेरा न मन मेरा है
फिर क्यूँ मन तोड़ दिया
मन मन्दिर में तुम रहते
उस मन को जोड दिया
सांझ- सवेरे दीप जले
मन जगमग जोड़ दिया
मन से मन पाता प्रेम है
मन ही मन को फूल दिया
प्यार लिखा चाहत मन की
फिर दो आखर प्रेम किया
बे-मौसम बारिश का होना
मन ने आंखों को नीर दिया
मन खट्टा, मन है भी मीठा
मन ने मन को खोज लिया
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा