‘मन’
मनुष्य के लिए उसका जीवन इच्छाओं की नदी में तैरती हुई नाव की तरह है। मांझी रूपी मन उस नाव को संचालित करता है। कुशल मांझी मौसम और हवाओं के रुख के अनुसार नाव चलाता है, कभी जलधारा के विपरित तो कभी जलधारा के बहाव के अनुकूल । वह अपनी नाव की स्थिति उसकी क्षमता और जलधारा के अनुसार ही लोगों को बैठाता है। सामान्य दिनों में जब नदी शांत गति से बहती है तब और जब नदी उफान पर रहती है तब की परिस्थिति के अनुसार ही मांझी सवारियां बैठाता है। नाव में पतवार निरन्तर चलानी पड़ती हैं। ठीक उसी तरह मन रूपी मांझी यदि बुद्धि और विवेक की पतवार से जिंदगी की नाव को अपनी स्थिति , गति के हिसाब से चलाता है, तो जिंदगी की नाव सही सलामत चलती रहती हैं। नाव में छिद्र हो जाने पर उसकी मरम्मत होती है अन्यथा छिद्र से नाव में पानी भरने लगता है और खतरे की संभावना बढ़ जाती है। ठीक उसी तरह जीवन की नाव में भी काम,क्रोध,मोह,लोभ, ईर्ष्या-द्वेष,स्वार्थ आदि विकार उत्पन्न होते हैं तो मन रूपी मांझी का कर्तव्य होता है कि वह संतो , महात्माओं,महान विभूतियों , आध्यात्मिक ग्रन्थों में वर्णित आदर्शों, संस्कारों को अपनाकर उन विकारों को दूर करें । एक कुशल चिकित्सक जैसे उचित उपचार से बीमारी दूर करता है उसी प्रकार नैतिक मूल्यों की पुस्तकों , श्रेष्ठ लोगों की सत्संगति से मन के विकार सरलता से दूर किए जा सकते हैं।
अच्छी पुस्तकों, साहित्य आदि की बातें पढ़ते ही मन में समाए कूड़े की सफ़ाई कुछ ही दिनों में अपने आप होने लगती है। मन की इच्छाओं को विवेक की कसौटी पर कसते रहने से आत्मबल मज़बूत होता है। जीवन में नारायण रूपी भगवान में ही आत्मबल होता है।
“मन के हारे हार है,मन के जीते जीत” इस पंक्ति से स्पष्ट है कि मन मज़बूत है, तो दुनिया में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है जो मनुष्य प्राप्त न कर सके। वहीं सोचे विचारे बगैर मनमौजी तरीके से काम करने पर अंततः पश्चाताप और ग्लानि हाथ लगती है। सुकून की जिंदगी का पता सिर्फ़ एक बात से आंका जा सकता है कि रात में बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाए । यदि ऐसा है तो समझना चाहिए कि जीवन सही दिशा में है , अन्यथा नकारात्मक जीवन की प्रथम पहचान इससे होती है कि दवा के बगैर नींद नहीं आती और सुबह उठते ही असहजता का बोध होने लगता है ।
इसीलिए जीवन को सकारात्मक सोच के साथ हम सभी को विभिन्न लेखकों, कवियों, साहित्य को आत्मसात करने की आवश्यकता है….
‘ पुनीत त्रिपाठी ‘