मन
ये मन भी बड़ा ही अज़ीब है..कभी कभी अच्छा महसूस नहीं करता..पर फिर भी अपने आपको मज़बूत एहसास कराता रहता है..अच्छा दोस्त है मेरा ये..कभी कभी खुद को दुखी करने वालों को बददुआ देने लगता है..पर दूसरे ही पल दुआ भी देने लगता है..आखिर क्या चाहता है ये ?…शायद चाहता है स्थिर होना..शान्त होना..मन की चंचलता अक्सर इंसान को ज़िंदगी में सही निर्णय नहीं लेने देती..ये मन ही तो है जो हर वक्त अपना महसूस कराता है..हरदम मेरे कान में कहता है ” मन के हारे हार है..मन के जीते जीत”……कुछ भी हो….अच्छा दोस्त है मेरा ©® अनुजा