मन हुआ है आज फिर से विकल
मन हुआ है आज फिर से विकल
प्रिय आओगी आज या आओगी कल
हृदय की धड़कनों का सिलसिला
कुछ गया है बढ़
पूस की रात है
जिस्म गया है अकड़
तुम जो आओ तो मिले कुछ सबल
गांव की पगडंडियों पर लेते थोड़ा टहल
तुम जो आ जाते तो
कर लेते सत्यनारायण की पूजा
फिर बचता न कोई काम दूजा
खेतों में हो जाती गेहूं की बुआई
ओल और हल्दी की हो जाती कुराई
प्रियतम मेरे… ओ मेरे जीवन
देर न कर .. अब देर न कर
आ जाओ आज या आ जाओ कल … अभिषेक राजहंस