मन से ज्यादा है नहीं , उपजाऊ स्थान ।
मन से ज्यादा है नहीं , उपजाऊ स्थान ।
जैसा भी बोता मनुज , उपजे वैसा जान ।।
उपजे वैसा जान , मधुरता या हो नफरत ।
उसी भाव की रोज , खाद पानी की फितरत।
निर्मल कर निज ह्रदय , प्रीत हो जन की जन से । कटुता ,हिंसा , बैर , मित्र त्यागो अब मन से ।।
सतीश पाण्डेय