Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Nov 2020 · 2 min read

मन, संस्कार एवं स्वभाव*

———–०००००———

१. मन*
———
आधुनिक मानसशास्त्र के अनुसार मन के दो भाग होते हैं । पहला भाग, जिसे हम ‘मन’ कहते हैं, वह ‘बाह्यमन’ है । दूसरा अप्रकट भाग ‘चित्त (अंतर्मन)’ है । मन की रचना एवं कार्य में बाह्यमन का भाग केवल १० प्रतिशत जबकि अंतर्मन का ९० प्रतिशत है ।

निरंतर आनेवाले विचार व भावनाओं का संबंध बाह्यमन (Conscious mind) से होता है । जबकि अंतर्मन (Unconscious mind) सभी भाव-भावनाओं का, विचार-विकारों का संग्रह ! इस संग्रह में सर्व प्रकार के अनुभव, भावनाएं, विचार, इच्छा-आकांक्षाएं आदि होते हैं । इसमें देह, इंद्रिय, मन, बुद्धि व अहं आदि की वृत्ति व कृत्यों की विविध स्मृतियां विभिन्न संस्कार केंद्रों में संग्रहित होती हैं तथा वे विचाररूप में प्रकट होती रहती हैं ।

१. वासना केंद्र: वासनाएं, इच्छाएं, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं, एषणाएंं (जिस प्रकार प्राणैषणा, अर्थात् जीवित रहने की इच्छा; उसी प्रकार पुत्रैषणा, धर्मैषणा, मोक्षैषणा) के संस्कार इस केंद्र में होते हैं ।

२. रुचि-अरुचि केंद्र :रुचि-अरुचि के संदर्भ के संस्कार इस केंद्र में संग्रहित होते हैं ।

३. स्वभाव केंद्र : इस केंद्र में स्वभाव अंतर्गत गुण व दोष के संस्कारों का संग्रह होता है ।

४. विशेषता केंद्र : कला, खेल इत्यादि के क्षेत्र में कुशलता के संदर्भ में संस्कार इस केंद्र में होते हैं ।

५. लेन-देन केंद्र : इसमें संचित व प्रारब्ध कर्म अंकित होते हैं ।

२. संस्कार:-
—————————————
आध्यात्मिकदृष्टि से ‘संस्कार’ शब्द का अर्थ है शरीर, पंचज्ञानेंद्रिय, पंचकर्मेंद्रिय, मन, बुद्धि व अहं की वृत्ति एवं कृतिसंबंधी अंतर्मन में अथवा चित्त पर उभरे चिन्ह अथवा प्रभाव । वृत्ति व कृति के अधिकांश चिन्ह बाह्यमन में उभरते हैं तथा कुछ सेकंडों में अथवा मिनटों में ही वे नष्ट हो जाते हैं, उदा. मार्ग पर चलते समय दिखे मनुष्य, समाचार-पत्र में पढे निरर्थक समाचार । जिस बाह्य वस्तु, व्यक्ति, प्रसंग अथवा घटनाओं की छाप अंतर्मन में, अर्थात् चित्त में उभरती है, वह हमारे स्मरण में अधिक समय, जन्मभर या जन्म-जन्मोंतक भी रहते हैं ।

३. स्वभाव
————
जब प्रत्येक कृतिद्वारा हमारे अंतर्मन के विशिष्ट संस्कार बार-बार प्रकट होते हैं, तब उसे ‘स्वभाव’ की संज्ञा दी जाती है । सामान्यतः अच्छे संस्कारों को ‘गुण’ व बुरे संस्कारों को ‘स्वभावदोष’ कहते हैं । किसी विशिष्ट स्वभाव के कारण व्यक्ति के आचरणद्वारा उसकी व उससे संबंधित अन्य व्यक्तियों की हानि हो, तो उसे ‘स्वभावदोष’ कहते हैं । आध्यात्मिक परिभाषा में जिन्हेें ‘षड्रिपु’ कहते हैं, ऐसे काम-क्रोधादि विकारों का स्वभावदोषों के माध्यम से प्रकटीकरण होता है ।

हमसे होनेवाली क्रिया अथवा कृति तथा व्यक्त अथवा अव्यक्त (मन में उभरी) प्रतिक्रिया हमारे संस्कारों पर निर्भर करती है । हमारे जीवन की कुल क्रियाओं अथवा कृतियों व प्रतिक्रियाओं में से सामान्यतः ५० प्रतिशत उचित होती हैं, तथापि ५० प्रतिशत अनुचित होती हैं । उचित कृति व अनुचित प्रतिक्रिया गुण से और अनुचित कृति व अनुचित प्रतिक्रिया स्वभावदोष से संबंधित होती है । अनुचित कृति व अनुचित प्रतिक्रिया के कारण अन्यों के मन में प्रतिक्रिया उभरती है व तनाव बढाती हैं । स्वभावदोषों का प्रकटीकरण अयोग्य कृतियों व प्रतिक्रियाओेंं के माध्यम से होता है, इसलिए स्वभावदोषों का विचार करते समय उनका अभ्यास आवश्यक है ।

••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
? प्रभु चरणों का दास :- “चंदन”
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••

Language: Hindi
Tag: लेख
210 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कैसे बताऊं मेरे कौन हो तुम
कैसे बताऊं मेरे कौन हो तुम
Ram Krishan Rastogi
इस महफ़िल में तमाम चेहरे हैं,
इस महफ़िल में तमाम चेहरे हैं,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
*
*"बसंत पंचमी"*
Shashi kala vyas
घमंड
घमंड
Ranjeet kumar patre
जब तक दुख मिलता रहे,तब तक जिंदा आप।
जब तक दुख मिलता रहे,तब तक जिंदा आप।
Manoj Mahato
"" *माँ के चरणों में स्वर्ग* ""
सुनीलानंद महंत
माँ की आँखों में पिता / मुसाफ़िर बैठा
माँ की आँखों में पिता / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
तुम गर मुझे चाहती
तुम गर मुझे चाहती
Lekh Raj Chauhan
माँ
माँ
संजय कुमार संजू
*****नियति*****
*****नियति*****
Kavita Chouhan
स्त्रियाँ
स्त्रियाँ
Shweta Soni
दीपावली
दीपावली
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
हम हिंदुओ का ही हदय
हम हिंदुओ का ही हदय
ओनिका सेतिया 'अनु '
मेरे पिताजी
मेरे पिताजी
Santosh kumar Miri
पग पग पे देने पड़ते
पग पग पे देने पड़ते
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
अर्थ नीड़ पर दर्द के,
अर्थ नीड़ पर दर्द के,
sushil sarna
राम नाम सर्वश्रेष्ठ है,
राम नाम सर्वश्रेष्ठ है,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
मैं तो महज एक ख्वाब हूँ
मैं तो महज एक ख्वाब हूँ
VINOD CHAUHAN
*जीतेंगे इस बार चार सौ पार हमारे मोदी जी (हिंदी गजल)*
*जीतेंगे इस बार चार सौ पार हमारे मोदी जी (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
हिन्दी हाइकु
हिन्दी हाइकु
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
Arghyadeep Chakraborty
(22) एक आंसू , एक हँसी !
(22) एक आंसू , एक हँसी !
Kishore Nigam
2761. *पूर्णिका*
2761. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"परिवर्तन"
Dr. Kishan tandon kranti
गीत लिखूं...संगीत लिखूँ।
गीत लिखूं...संगीत लिखूँ।
Priya princess panwar
आक्रोश प्रेम का
आक्रोश प्रेम का
भरत कुमार सोलंकी
न  सूरत, न  शोहरत, न  नाम  आता  है
न सूरत, न शोहरत, न नाम आता है
Anil Mishra Prahari
चित्रकार उठी चिंकारा बनी किस के मन की आवाज बनी
चित्रकार उठी चिंकारा बनी किस के मन की आवाज बनी
प्रेमदास वसु सुरेखा
चिड़िया
चिड़िया
Kanchan Khanna
जीवित रहने से भी बड़ा कार्य है मरने के बाद भी अपने कर्मो से
जीवित रहने से भी बड़ा कार्य है मरने के बाद भी अपने कर्मो से
Rj Anand Prajapati
Loading...