मन मोहन हे मुरली मनोहर !
कृष्ण कहो या कहो कन्हैया
कोटि-कोटि तेरे नाम है।
मन मोहन हे मुरली मनोहर !
तेरी अजब ही शान है।
तू योगेश्वर, तू सर्वेश्वर
पर ग्वालों में रमता फिरता ।
और लुटाने को आनन्द घन
अद्भुत लीलाएं सब करता ।
धन्य किया माटी को मुख धर
तू गुणातीत गुण खान है ।
मन मोहन हे मुरली मनोहर
तेरी अजब ही शान है ।
जिसमें सब बह्माण्ड समाता
वो यशुदा के अंक समाता ।
कहीं ग्वाल संग गाय चराता
कहीं गोपी संग रास रचाता ।
भोग लगा माखन का घर-घर
घर भरते सब धन धान्य है ।
मन मोहन हे मुरली मनोहर
तेरी अजब ही शान है।
मातु यशोदा अति दुलराती
त्रिभुवनपति को अंक सुलाती ।
षटरस व्यञ्जन नित्य बनाती
बड़े प्यार से तुम्हें खिलातीं।
माँ के प्रेम में तज व्यापकता
धरे लघु रूप संतान हैं ।
मन मोहन हे मुरली मनोहर
तेरी अजब ही शान है।
तू निर्बन्ध है अति विराट है ।
किसकी क्षमता तुझे जो बांधे ?
पर भोली यशुदा माँ धन्य जो
छोटी सी रज्जु से तुम्हे बांधे ।
जीवन के उच्चावचों में प्रभु
श्वांसों की सुन्दरतम तान है ।
मन मोहन हे मुरली मनोहर !
तेरी अजब ही शान है ।
तू राधे रानी की सत्ता
मित्र भाव की तू व्यापकता ।
पुत्र रूप तुम प्रति जननी के
गूढ़ भावों की सहज सरलता ।
घोर निशा को चीर के निकला
हम सब का दिनमान है ।
मन मोहन हे मुरली मनोहर !
तेरी अजब ही शान है ।