मन में क्यों भरा रहे घमंड
इस समूचे ब्रह्मांड के
हम इक छोटे से पिंड
फिर भी ना जाने मन
में क्यों भरा रहे घमंड
राम कृपा से मिली है
यह पंचभूत रचित देह
फिर भी हम नहीं रखते
सब जीवों के प्रति स्नेह
सबको पता है एक दिन
तय इस वसुधा से विदाई
फिर भी सब लगे करने में
इत ऊत से अंधाधुंध कमाई
हे ईश्वर देना सब जीवों को
इतना सन्मति और विवेक
अपनी भूमिका को पहचान
करें ना वो औरों से अतिरेक